आगरा किले में स्थित दीवान-ए-खास का निर्माण दीवान-ए-आम की तरह ही मुगल बादशाह शाहजहां ने 1935 में करवाया था। दीवान-ए-आम के विपरीत इसका प्रयोग विशिष्ट लोगों के लिए किया जाता था। दीवान-ए-खास का निर्माण विदेशी उच्च पदाधिकारी, राजदूत और राजाओं की खातिरदारी के लिए किया गया था। साथ ही यहां पूर्ण गोपनीयता के साथ साम्राज्य के बारे में चर्चा की जाती थी। यही वजह है कि मुलगकाल में दीवान-ए-खास सत्ता का वास्तविक केन्द्र हुआ करता था। हॉल में बने चबूतरे में दो भव्य सिंहासन हुआ करता था।
एक पर बादशाह बैठते थे, जो कि सफेद संगमरमर से बना था। वहीं दूसरा सिंहासन मेहमान के लिए था, जिसे काले पत्थर से बनवाया गया था। इस भव्य हाल को कीमती पत्थर, सोना और चांदी के आभूषणों से सजाया गया था, जिससे यह यहां आने वालों का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींचता था।
हॉल की छत को लकड़ी की तख्ती से बनाया गया था और सोने व चांदी की परतों से ढंका गया था, जिससे यह सूर्य की तरह चमकदार होने का आभास कराता था। यहां एक दरवाजे के जरिए पहुंचा जा सकता था, जो दोहरे स्तंभ से बना था। हॉल के अंदरूनी हिस्से में पर्सियन शिलालेख अंकित था, जो इस हॉल की तुलना सर्वोच्च स्वर्ग से और बादशाह की तुलना सूर्य से करता था।