इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी या भारतीय विद्या संस्थान को 1956 में स्थापित किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राचीन कला वस्तुओं, पुरातात्विक अवशेष और प्राचीन भारत की दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण करना है। इसकी स्थापना, प्रख्यात गुजराती व्यवसायी, कस्तुरभाई लालभाई जी ने की थी। इस संस्थान में एक संग्रहालय भी है जहां कई धर्मो - हिंदू, जैन, बौद्ध, सिक्ख, और ईसाई आदि के धार्मिक साहित्य को संभाल कर रखा गया है।
सभी धर्मो की कविता और अन्य सामान भी यहां सुरक्षित है। यहां जैन साहित्य का सबसे बड़ा संग्रह है जिसमें 76,000 पांडुलिपि, 500 सचित्र संस्करण और 45000 मुद्रित पुस्तकें रखी हुई है। यहां कई प्राचीन पुस्तकें भी रखी है जो संस्कृत, अपभ्रंश, पाली, हिंदी, पुरानी गुजराती और राजस्थानी आदि में लिखी गई है।
यहां स्थित मूर्तियां, पत्थर, मिट्टी, कपड़े, कांसे आदि से बनी हुई है। लकड़ी का काम, भारतीय सिक्के, रविन्द्र नाथ टैगोर की पेटिंग्स और तिब्बती व नेपाली कला भी यहां संरक्षित है।