महुडी तीर्थ, जैनियों के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। इस स्थान को प्राचीनकाल में मधुमती के नाम से जाना जाता है और 2000 साल पुरानी सभ्यता के सबूत आज भी यहां मिलते है। आचार्यदेव बुद्धि सागरसूरीसवारजी ने इस मंदिर के निर्माण की शुरूआत तपस्या करने के बाद की थी। इस मंदिर में भगवान घंटाकर्ण महावीर मंदिर की पूजा की जाती है जो क्षत्रिय राजा तुंगाभद्रा के रूप में बनी हुई है और इनके हाथ में तीर और धनुष है।
विभिन्न धर्मो से लोग यहां आते है, इस मूर्ति के दर्शन करते है और अपनी मन्नत पूरी होने की दुआ करते है। लोगों का मानना है कि इस मूर्ति में चमत्कारी शक्तियां है जो लोगों के दुख: हर लेती है। हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते है और दान के रूप में सुखाडी देते है, माना जाता है कि यह देवता का पसंदीदा भोजन है।
यहां 30 फीट ऊंची दीवार है जो संगमरमर से निर्मित है और मंदिर के नजदीक ही स्थित है। आर्चाय ने यहां एक भगवान की मूर्ति भी स्थापित की थी। मुख्य मंदिर में 22 इंच ऊंची संगमरमर से निर्मित पद्मप्रभु की मूर्ति रखी हुई है। यह एक रस्म है कि भक्त, तीर्थकरों के आसपास एक भूमति लेते है यानि थोड़ा चलते है।