श्री अबाथसहायेश्वरर मंदिर एक मुख्य मंदिर है जहाँ भगवान शिव की पूजा अबाथसहायेश्वरर के रूप में की जाती है। यहाँ शिवलिंग के पूजा की जाती है और शिव को स्वयंभू के रूप में जाना जाता है। मंदिर में अन्य देवताओं की प्रतिमाएं भी है जैसे - भगवान गणेश जो कि यहाँ 'कलंगामर कथा विनायगर' के रूप में प्रसिद्ध हैं और भगवान दक्षिणमुखी जो कि बृहस्पति के रूप में जाने जाते हैं।
मंदिर में बृहस्पति की पूजा करने के लिए भक्तों की खासी भीड़ रखती है, खास तौर पर हर वर्ष बृहस्पति पारगमन के समय अपने प्रिय देवता को रिझाने के लिए ये लोग यहाँ आते हैं इस आशा में कि उनके जीवन में शुभ अवसर आयें और बुरे ग्रहों का प्रभाव ख़त्म हो। इस समय लोग बृहस्पति देव (गुरु) की विशेष पूजा करते हैं। भगवन गुरु की पूजा का शुभ दिन गुरूवार है इसलिए इस दिन विशेष पूजा की जाती है।
इस जगह का नाम अलंगुडी कैसे पड़ा इसके पीछे एक पुरानी कहानी है। ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग में समुद्र मंथन (पर्कादल) के समय वासुकी सांप की जहर उगलती फुंकारों से पीड़ित थे इसलिए वे शिव की शरण में गए और बचाने की प्रार्थना की।
तब भगवान शिव ने वो ‘अला विषम’ नामक जहर पी लिया, इस प्रकार इस जगह का नाम अलंगुडी पड़ा और तभी से इष्ट देव शिव को यहाँ अबाथसहायेश्वरर के नाम से जाना जाता है जो कि हानि और बुरे समय से रक्षा करते हैं। देवतागण एक बार असुर गजामुखसुरन से भी परेशान थे तब भगवान गणेश ने उसे पराजित किया था।
तब से भगवान गणेश के पूजा यहाँ यहाँ 'कलंगामर कथा विनायगर' के रूप में की जाती है। पार्वती माता ने यहाँ शिव से विवाह करने के लिए तपस्या कि और भगवान शिव से विवाह भी किया इसलिए यह जगह तिरुमाना मंगलम के रूप में भी प्रसिद्ध है।