अष्टविनायक का मतलब है आठ गणपति। हालांकि इस शब्द का उपयोग संपूर्ण महाराष्ट्र में फैले हुए आठ मंदिरों की जानी मानी तीर्थयात्रा का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये आठ मंदिर हैं – मोरगांव का मयूरेश्वर, सिद्धटेक का सिद्धिविनायक, पाली का बल्लालेश्वर, लेणयाद्री का गिरिजात्मक, थेऊर का चिंतामणि, ओझर का विघ्नेश्वर, रांजणगाँव का महागणपति और अंत में महड का वरद विनायक।
अष्टविनायक के सभी आठ मंदिर अत्यंत पुराने और प्राचीन हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश और मुद्गल पुराण – हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह, में किया गया है। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प बहुत सुंदर है जिसे संभाल कर रखा गया है और समयानुसार उसका नवीनीकरण भी किया गया है – विशेषत: पेशवा शासन काल के दौरान जो संयोग से गणपति के उत्कट भक्त थे। प्रत्येक हिंदू के जीवन का एक उद्देश्य यह होता है कि अनंत आनंद और भाग्य प्राप्त करने के लिए वह अपने जीवनकाल में एक बार अष्टविनायक के आठ मंदिरों की यात्रा करे।
सबसे रोचक तथ्य जो इन सभी मंदिरों को आपस में बाँधता है यह है कि वे सभी-सभी स्वयंभू हैं – स्वयं उत्पन्न। ये मूर्तियाँ मनुष्य द्वारा नही बनाई गई हैं और ऐसा विश्वास है कि इनमें से प्रत्येक स्थान पर भगवान गणपति स्वयं प्रकट हुए हैं।
आठ मंदिरों की तीर्थ यात्रा
गणपति के सभी आठ मंदिर उनके विभिन्न रूपों, बाधाओं को दूर करने वाले से लेकर उन्नति और विद्या प्राप्ति के मार्गप्रदर्शक रूप तक का वर्णन करते हैं। प्रत्येक मंदिर अलग है, जबकि प्रत्येक मंदिर में अलौकिक समानता है।
इन गणपतियों की स्थिति और सूंड एक दूसरे से अलग है। उदाहरण के लिए, सभी मंदिरों में गणपति को इस प्रकार दर्शाया गया है कि उनकी सूंड उनके बाईं ओर गिरती है परंतु सिद्धटेक का सिद्धिविनायक मंदिर ही ऐसा मंदिर हैं जहाँ सूंड दाईं ओर गिरती है।
मयूरेश्वर का मंदिर मोरगाँव गाँव में है। इस मंदिर में 50 फीट ऊंचा गुंबद है जो प्रत्येक कोने पर एक स्तंभ ऐसे चार स्तंभों पर खड़ा किया गया है। इसके पास ही एक विशाल दीपमाला है – पत्थर से बनाया गया तेल के दीयों का स्तंभ।
सिद्धिविनायक मंदिर सिद्धटेक में है। यहाँ प्रदक्षिणा करना बहुत महत्वपूर्ण मना जाता है क्योंकि मंदिर एक पहाड़ी पर है और संपूर्ण प्रदक्षिणा लगभग 5 किमी की होती है।पाली गाँव बल्लालेश्वर मंदिर का घर है। आठ गणपति मंदिरों में से केवल यही एक मंदिर है जिसका नाम एक भक्त के नाम पर रखा गया है जो ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुआ था।
गिरिजात्मक का मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर गुफाओं में स्थित है। ऊपर तक पहुँचने के लिए लगभग 300 सीढ़ियाँ चढनी पड़ती हैं हालांकि यहाँ से दृश्य बहुत सुंदर दिखता है। थेऊर का चिंतामणि मंदिर वह स्थान है जहाँ गणपति ने चिंतामणि का रूप लेकर ब्राह्मण की सहायता कर उसकी चिंताए दूर की थी।ओझर का विघ्नेश्वर मंदिर अपनी तरह का एक ऐसा मंदिर है जहाँ सुंदर गुंबद है और शिखर सोने से बना हुआ है।
महागणपति का मंदिर पूर्वमुखी है और एक विशाल प्रवेश द्वार से सज्जित है। जय और विजय दो द्वारपाल हैं जिनकी मूर्तियाँ द्वार पर देखी जा सकती हैं। यह रांजणगाँव में स्थित है।अंत में वरद विनायक मंदिर महड में स्थित है। इस स्थान की मूर्ती एक झील के किनारे मिली थी और बाद में इसे एक मंदिर के अंदर रखा गया। वरद विनायक का आज जो मंदिर हम देखते हैं वास्तव में वह पेशवा शासकों द्वारा पुनर्निर्मित और पुनर्गठित किया गया है।
तीर्थ यात्रा क्यों करें?
कई बसें हैं जो इन आठ मंदिरों के लिए एक संगठित दौरे का प्रबंध करती हैं, जो तीन दिन का भव्य यात्रा कार्यक्रम होता है। आप अपने नज़दीकी टूर बस संचालक के पास जाकर पूर्ण आनंद के तीन दिनों का आरक्षण करा सकते हैं। आप अकेले या परिवार के साथ यात्रा कर सकते हैं।ऐसा विश्वास है कि गणपति के इन आठ मंदिरों में एक दिव्य शक्ति है जो उनका मार्गदर्शन करती है। यद्यपि यह यात्रा थोड़ी कठिन और थका देने वाली है, फिर भी इनमें से प्रत्येक पवित्र स्थान के दर्शन से आपके मन में उस सर्वोच्च शक्ति के लिए विश्वास पुनः स्थापित हो जाता है जिसे यद्यपि विभिन्न धर्मों में विभिन्न नामों से जाना जाता है परंतु अंततः वह एक है। महाराष्ट्र के पुणे जिले से यात्रा प्रारंभ करना, जहाँ आठ में से छह विनायक है, रायगढ़ जिले तक जाना जहाँ अन्य दो विनायक है और वापस घर जाना थोडा डराने वाला हो सकता है। फिर भी, इस तीर्थयात्रा के अंत में आपको शांति और भगवान के पास होने का समाधान मिलेगा।