बरन पहले कोटा राज्य का हिसा था, पर 10 अप्रैल 1991 में इसे राजस्थान के जिले की मान्यता प्राप्त हुई। 14 और 15वी सदी में यहाँ सोलंकी राजपूतों का शासन रहा। यह प्रांत सागवान, खेर, सालन, और गर्ग्सरी के घने जंगलों से घिरा हुआ है और इनके बीच कालीसिंध नदी का प्रवाह है।
रामायण में बरन की महत्वता
बरन में कई एसे स्थान है जो दुनिया भर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनमे से सिताबरी अपने धार्मिक और एतिहासिक कारणों के लिए श्रेष्ठ है। हिन्दू पौराणिक कथा अनुसार, भगवान राम की पत्नी सीता मैया ने अपने दोनों पुत्र लव और कुश को यहीं जन्म दिया। यह मान्यता है कि, अयोध्या छोड़ने के बाद सीता अपने दोनों बेटों के साथ यहीं रहती थी। यहाँ सीता मैया को समर्पित एक मंदिर है जिसके दर्शन सैलानी कर सकते हैं, इसके आस पास कई पानी के कुंड़ मौजूद है। हर साल यहाँ सीताबरी मेले का आयोजन होता है। इसके अलावा काकोनी, बिलास्गर, और शाहबाद किला यहाँ के अन्य पर्यटक स्थल है।
बरन के महत्वपूर्ण मंदिर
भांड देवरा मंदिर, ब्राह्मणी माताजी मंदिर और मनिहार महादेव मंदिर बरन के मुख्य धार्मिक स्थान है। बरन के अतरु तहशील में, यात्री गढ़गछ के कई अवशेष देख पाएंगे। जिन में से कुछ 9 वी और 13 वी सदी में बने प्राचीन मंदिर है। भांड देवरा मंदिर बरन का प्रमुख मंदिर है। बरन से 40 कि.मी दूर, रामगढ पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर को "राजस्थान का खाजराहो" भी कहा जाता है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वी सदी में हुआ था। इसी पाहडी पर सुप्रसिद्ध किस्ने और अन्नपूर्ण देवी का मंदिर भी है।
कैसे पहुंचे बरन
बरन जाने के लिए रोड, रेल और हवाई मार्ग तीनों की सेवा उपलब्ध है। जयपुर हवाई अड्डा और बरन रेलवे स्टेशन बरन के लिए सबसे सुलभ हवाई और रेल मार्ग है। यात्री अजमेर, बीकानेर जयपुर, दिल्ली और ग्वालियर से बस द्वारा बरन आ सकते हैं।
बरान जाने का बढ़िया समय
बरान जाने का सबसे बढ़िया समय फ़रवरी और अक्टूबर के बीच है। इस बीच यहाँ का मौसम बड़ा सुहावना और सैरसपाटे के लिए एकदम उत्तम समय है।