किराड़ू प्राचीन मंदिर, पांच मंदिरों का एक समूह है जो बाड़मेर से 39 किलोमीटर की दूरी पर हाथमा गाँव में स्थित है । 1161 के एक शिलालेख से पता चलता है की हाथमा को पहले किरतकूप के नाम से भी जाना जाता था जो पहले पनवारा वंश की राजधानी भी थी।
इस मंदिर के विषय में एक किवदंती बड़ी मशहूर है जो इसे और मंदिरों से अलग बनती है । इस इलाके के स्थानीय लोगों की माने तो एक साधू के शाप ने इस मंदिर को पत्थरों की नगरी में बदल दिया। ऐसा माना जाता है कि कई सालों पहले यहां एक साधु अपने शिष्य के साथ रहता था। एक बार वह भिक्षा के लिए कहीं गया था लेकिन उसने अपने शिष्य को इस भरोसे आश्रम में ही छोड़ा था कि गांववाले उसकी सेवा ठीक उसी प्रकार करेंगे जैसे वो उसकी करते हैं। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत, सिवाए एक कुम्हारन के किसी ने भी उसकी सुध न ली इस कारण शिष्य की तबियत खराब हो गयी और वो बहुत कमज़ोर हो गया।
जब साधु वापस लौटा तो शिष्य को बीमार देखकर वह बहुत ज्यादा क्रोधित हुआ। क्रोध में आकर उसने शाप दिया कि जिस स्थान के निवासियों में दया और करुणा की भावना न हो वहां जीवन का क्या मतलब, इसलिए यहां के सभी लोग पत्थर के हो जाएं और पूरा शहर बर्बाद और तहस नहस हो जाए।
साधू के इस श्राप के बाद देखते ही देखते वहां के सभी निवासी पत्थर के हो गए। बस वो कुम्हारन बाख गयी, जिसने साधू के चहिते शिष्य की सेवा की थी। साधु ने उस कुम्हारन से कहा कि तेरे ह्रदय में दूसरों के लिए करुणा और ममता है इसलिए तू यहां से चली जा। साथ में साधू ने उस औरत को ये चेतावनी भी दी कि जाते समय पीछे मुड़कर बिलकुल नहीं देखना वरना तू भी इन सब कि तरह पत्थर की हो जाएगी। इतना सुनते ही कुम्हारन वहां से तुरंत भाग गयी,
जब वो वहां से वापस जा रही थी तो जाते वक़्त उसके मन में अचानक एक विचार आया कि क्या सच में किराडू के लोग पत्थर के हो गए हैं? यह देखने के लिए वह जैसे ही पीछे मुड़ी वह खुद भी पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गयी। आज भी पास ही में स्थित सिहाणी गांव के नजदीक कुम्हारन की वह पत्थर की मूर्ति आज भी अपने उस डरावने अतीत को बयां करती दिखाई देती है।
यहाँ के पाँचों मंदिरों में सोमेश्वर मंदिर सबसे बड़ा है और इस मनीर को 11वीं शताब्दी में बनाया गया था ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। एक बहु बुर्जदार टॉवर और विभिन्न हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां भी इस मंदिर में मौजूद हैं। मंदिर के भीतरी कक्ष में भगवान का एक चित्र है , जबकि मंदिर का आधार एक रिवर्स वक्र कमल है।
यहाँ मौजूद अन्य चार मंदिर विष्णु और शिव को समर्पित है। महाकाव्य रामायण से कई सारे चित्रों को इस मंदिर के लिए लिया गया है जिनकी झलक यहाँ मंदिर की दीवारों और मूर्तियों में देखने को मिलती है। साथ ही इस मंदिर में अप्सराओं के भी कई सारे चित्र मौजूद हैं।