सेन थोम चर्च का निर्माण 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यपारियों द्वारा किया गया था, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था। पुर्तगालियों ने इसे एक छोटे गिरजाघर के रूप में बनवाया था पर 1893 में अंग्रेजों ने इसका पुनर्निर्माण किया और इसे कैथिडरल का दर्जा दे दिया। आज यह चर्च जिस रूप में है इसे अंग्रजों ने बनवाया था। नए निर्माण को नियो-गौथिक शैली में बनवाया गया था जो 19वीं शताब्दी में एक चर्चित ब्रिटिश वास्तुशिल्प था।
ईसाई पौराणिक कथाओं के अनुसार सेन थामस जीजस क्राइस्ट के 12 अनुयायियों में से एक थे। वह 52 ईस्वी क आसपास सीधे केरल के समुद्र तट पर पहुंचे थे और 72 ईस्वी तक यहां रुके थे। 72 ईस्वी में ही एक चोटी पर उनका निधन हुआ, जिसे आज सेंट थामस माउंट के नाम से जाना जाता है।
आज सेन थोम गिरजाघर इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण चर्च है। रोमन कैथोलिक चर्च होने के कारण यह मद्रास-मलयापुर कैथोलिक आर्कडियोसिस के अंतर्गत आता है। भारत के ईसाई समुदाय का यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।