चिकमंगलूर की यात्रा पर गये पर्यटकों को यहां 1915 में स्थापित केन्द्रीय कहवा शोध संस्थान देखना चाहिए। सी.सी.आर.आई की स्थापना कोप्पा प्रयोगशाला में पत्तियों की बीमारी, जो कहवा संयत्र को प्रभावित कर रही थी, को दूर करने के लिए की गई थी। यह संस्थान 130 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें से 80.26 हेक्टेयर प्लांटेशन के काम आता है। संयत्र क्षेत्र का 28.94 हेक्टेयर रोबस्टा काफी एवं 51.32 हेक्टेयर अरेबिका के द्वारा ले लिया गया।
कुछ समय के पश्चात प्रयोगशाला को कहवा बीज,पौध तथा खेती सम्बन्धी समस्याओं को हल करने के लिए पूरी तौर पर प्रयोग केन्द्र के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। 1925 में, मैसूर सरकार नें इसका नाम बदलकर “मैसूर कहवा शोध केन्द्र” रख दिया। संस्थान नें विविध फसलें यथा अरीका, काली मिर्चें आदि बेचना शुरू कर दिया। यहां स्थित एक नियंत्रित बांध सी.सी.आर.आई एक और महत्वपूर्ण विशेषता है। इस बांध का उपयोग जल की मात्रा के स्तर को उचित बनाये रखने के लिए किया जाता है।
केन्द्रीय कहवा शोध संस्थान में एक नर्सरी, भवन, रोड एवं विस्तारित भूमि है। संस्थान पहुंचकर पर्यटकों को इथोपिया से आयातित सामग्री एवं जर्मप्लाज्म की विस्तृत रेंज देखने को मिलेगी। यहां आपको आधुनिक प्रयोगशाला तथा एक पुस्तकालय देखने का अवसर मिलेगा। पुस्तकालय में कहवा की फसल से सम्बन्धित पुस्तक-पुस्तिकाएं देखनें को मिलेंगी।