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दिल्ली हाट, दिल्ली

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यदि आपको 'कला' और 'हस्तशिल्प' शब्द आपको मोहित करते हैं तब दिल्ली में इस जगह आपको अवश्य आना चाहिये। दिल्ली पर्यटन और परिवहन विकास निगम (डीटीटीडीसी), एन एम डी सी, डी. सी. (हस्तशिल्प) और डी. सी.(हथकरघा), कपड़ा मंत्रालय (भारत सरकार) और पर्यटन मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से खुले आसमान के नीचे एक कला और शिल्प बाज़ार का आयोजन किया जाता है। इसे भारतीय कला, शिल्प और संस्कृति की मोहक विरासत का परिचय आम लोगों से कराने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

वर्तमान में नई दिल्ली में दिल्ली हाट नाम के दो बाज़ार हैं जबकि तीसरा जनकपुरी नामक स्थान पर आम लोगों के लिये अगस्त 2013 में खुलने वाला है। पहला दिल्ली हाट 1994 में श्री अरबिन्दो मार्ग पर स्थापित किया गया था जबकि दूसरे को अप्रैल 2008 में पीतमपुरा में स्थापित किया गया था और यह 7.2 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला है। बाजार को खरीददारों के लिये और सुविधाजनक बनाते हुये प्रथम दिल्ली हाट को प्रसाधन के साथ-साथ पूर्णतयः व्हील चेयर द्वारा सुलभ कर दिया गया है।

ये दिल्ली हाटें पूरे भारत के कुशल, प्रतिष्ठित और पंजीकृत शिल्पकारों की कलाओं और शिल्प भण्डार के लिये जाना जाती हैं। डीसी हस्तशिल्प द्वारा पंजीकृत शिल्पकारों को ही इस जगह अपने कृतियों को प्रदर्शित करने की अनुमति है और उन्हे एक चक्रीय क्रम में 15 दिनों के एक छोटे से अन्तराल के लिये एक स्टॉल दे दी जाती है जिससे कि आगन्तुकों को अनोखी और गुणवत्तापरक वस्तुओं को देखने और खरीदने का अवसर मिलता है। इस सम्पूर्ण व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण शिल्पकारों द्वारा उनके पारम्परिक भारतीय लोककला का परिचय शहरी ग्राहकों से करवाना है।

यहाँ पर प्रदर्शित और उपलब्ध कुछ उत्पादों में कलात्मक वस्त्र और जूते-चप्पल, सहायक सामग्री, रत्न, माणिक्य, खिलौने, सजावटी कलात्मक वस्तुयें, नक्काशीदार लकड़ी के सामान, धातु के सामान इत्यादि शामिल हैं।

हाट परिसर के अन्दर ही भारत के विभिन्न क्षेत्रों के व्यञ्जनों के परोसते कई खाने-पीने की दुकानों की व्यवस्था की गई है जिससे कि परिवार के साथ या अकेले आने वाले लोगों के लिये यह जगह फुर्सत के पल बिताने के लिये एक उपयुक्त जगह बन जाती है। आप हाट परिसर में टहलते हुये अपनी पसंदीदी वस्तुओं की खरीददारी कर सकते हैं और बाद में आराम फरमाते हुये भारत के विभिन्न राज्यों के स्वादिष्ट व्यञ्जनों का आनन्द ले सकते हैं। इसके अलावा दर्शकों के लिये खुले मंच पर प्रतिदिन आयोजित होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मजा भी आप ले सकते है और बच्चों के लिये विशेष रूप से नाटक का मंचन अलग से होता है।

हलाँकि परिसर के अन्दर की इमारतों और स्टॉलों की स्थापत्य कला पारम्परिक भारतीय शैली की है और हाट परिसर को पेड़ों, झाड़ियों और रंग-बिरंगे फूलों के पौधों के साथ आकर्षक रूप से सजाया गया है। एक स्थान पर इतनी अधिक सुविधाये उपलब्ध रहती हैं कि किसी आगन्तुक या कला प्रेमी को और किसी वस्तु की चाहत नहीं रह जाती।

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