रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित बाहुबली की मूर्ति, धर्मस्थल का एक विशेष आकर्षण है। लगभग 39फीट ऊँची यह मूर्ति, 1973 में ’रंजन गोपाल कृष्ण शेनोई’ ने बनाई थी। फरवरी 1982 में यह मूर्ति, वीरेंद्र हेगड़े ने मंदिर में स्थापित की थी। इस मूर्ति को जैन संप्रदाय के लोग त्याग और निस्वार्थता का प्रतीक मानते हैं।
एक प्रसिद्ध लोककथा के अनुसार, बाहुबली और भरत (बड़ा भाई), दो राजकुमार थे जिन्होंने सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने के लिए एकदूसरे से युद्ध करने का निश्चय किया। युद्ध जीतने के बाद, बाहुबली ने अपने भाई को जीवित छोड़ दिया। इस समय उन्हें अहसास हुआ कि युद्ध व्यर्थ की चीज़ है।
इसके बाद अपने भाई को अपना राज्य सौंपकर उन्होंने दिगंबर जैन संप्रदाय को अपना लिया। प्रायश्चित करते हुए, बाहुबली ने ज्ञान प्राप्त होने तक निर्वस्त्र खड़े रहने का प्रण किया। इस जगह पहुँचने के लिए पर्यटकों को लगभग 20 मिनट तक रत्नागिरी पहाड़ी की सीढि़याँ चढ़कर जाना होता है।
दिन में होने वाली उमस से बचने के लिए यात्रियों को यहाँ सुबह के समय जाना चाहिए। यात्रियों के लिए पहाड़ी के ऊपर पहुँचकर विश्राम और पीने के पानी की व्यवस्था है। यहाँ आने वाले यात्री बाहुबली की मूर्ति को सुबह 8बजे से 10बजे तक और साय 6बजे से 7बजे तक देख सकते हैं।