कैसे शिव मंदिर का अस्तित्व दीमापुर में आया, इसकी एक रोचक कहानी है। वर्ष 1961 में, सिंग्रीजन से एक ग्रामीण, रंगपहर संरक्षित वन चला गया था, जहां उसने चाकू को पैना करने के लिए एक बड़े पत्थर का इस्तेमाल किया था। जब वह चाकू पैना कर रहा था, किसी तरह का तरल पदार्थ पत्थर से बाहर रिसने लगा।
उसी रात उसने सपना देखा कि पत्थर भगवान शिव थे, जो उसके सपनों में एक संत के रूप में दिखाई दिये थे। वह एक ही सपना कई बार देखने लगा और अंततः उसने अपने सपने के बारे में ग्रामीणों को जानकारी दी। पुजारी और विद्वान पुरुषों के साथ-साथ ग्रामीण उस जगह पर गये और पुष्टि की, कि पत्थर वास्तव में एक शिवलिंग था।
हालांकि, शुरू में उन लोगों ने पत्थर को लेटा हुआ देखा और उनके लिये यह ज्यादा आश्चर्य की बात थी कि वे पत्थर को खड़ा नहीं कर पा रहे थे। निरंतर प्रार्थना और चढ़ावे के बाद पत्थर को अंत में खड़ा कर दिया गया था। तब से, सिंग्रीजन में पत्थर एक पूजा का प्रमुख स्थान बन गया है।