यह दरगाह मुस्लमान संत और विद्वान् बाबा रेशी की है। वे 15 वी सदी में कश्मीर के राजा, राजा जेन-उल-अबिदिन के दरबार के विख्यात सदस्य थे। वे बहुत वफादार थे और 1480 में उनके निधन के बाद यह समाधि बनाई गई। यह दरगाह समुंदरी तट से 2133 मीटर ऊँची और गुलमर्ग से 5 कि.मी दूर है।
इसका निर्माण मुग़ल और फारसी शैली में हुआ है, मकबरे के अन्दर लक़डी पर कि गई कारिगरी बहुत सुन्दर है। यहाँ का खूबसूरत बगीचा इतना बड़ा है कि एक साथ कई श्रद्धालु इकट्ठा हो सकते हैं। इस दरगाह में दर्शन की अनुमति सुबह 9 से शाम 5 के बीच की है। यात्री यहाँ किसी स्लेज, फिल्ड चटस या घोड़े पर सवारी कर बाबा रेशी दरगाह आ सकते हैं।