जैन धर्म के ग्रन्थों में हस्तिनापुर का बड़ी श्रद्धा के साथ उल्लेख किया गया है। इस जगह की प्रसिद्धि की शुरूआत भरत चक्रवर्ती की घटना से होती है और यहां बारह में से छ: चक्रवर्ती का जन्मस्थान भी है। इसके अलावा, रामायण के मुख्य पात्र परशुराम का जन्म स्थान भी हस्तिनापुर में ही है।
श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर में कई प्राचीन मूर्तियां रखी हुई है। यह स्थल तक तक उपेक्षित था, जब तक यहां विजय वल्ल्भ सूरी जी के आचार्य विजय समुद्र सूरी जी ने दौरा नहीं किया, उन्होने 1960 में इस स्थल का दौरा किया था। महान आचार्य ने मंदिर में पुनर्निर्माण करवाते हुए एक शिखर को बनवाया। उन्होने श्री शांतिनाथ भगवान की मूर्ति को स्थापित किया, जिसे श्री कुंथुनाथ भगवान के द्वारा लाया गया था और मंदिर में श्री अरनाथ भगवान की मूर्ति को अलग से रखा गया है।
इस मंदिर के महत्व की कल्पना इस बात से की जा सकती है कि इस मंदिर में प्रथम जैन तीर्थंकर, भगवान श्री आदिनाथ ने श्रेयांस कुमार के हाथों से गन्ने का रस लेकर अपना 13 माह पुराना उपवास तोड़ा था। इस मंदिर में एक भव्य पाराना या उपवास तोडने वाला हॉल है, जो मंदिर में सामने ही स्थित है। इस मंदिर में साल की अक्षय तृतीया को कई श्रद्धालु अपना उपवास तोड़ते है जो वह काफी लम्बे समय से रखते है। साल भर के उपवास को बरसी तप कहा जाता है।