सोडल मंदिर बाबा सोडल की स्मृति में बनाया गया था। ऐसा मान जाता है कि बाबा सोडल की मां पास के तालाब में उनके साथ थीं, जहां पर उन्होंने शरारत में उन पर मिट्टी के गोले फेंकना शुरू कर दिए थे। वह चिढ़ गईं और उन्हें श्राप दे दिया।
इसके बाद, उन्होंने अपनी मां से केवल अभिशाप ही नहीं दोहरवाया बल्कि उनकी आज्ञा का पालन करते हुए तालाब में कूद गए, और कभी नहीं लौटे। ऐसा माना जाता है कि बाबाजी एक पवित्र सर्प के रूप में फिर से प्रकट हुए थे और दुनिया से अपनी विदाई का भेद खोला था। उन्होंने अपनी पूजा के लिए चड्ढा और आनंद कुलों की शुरुआत भी की। यहां सोडल मेला हर साल अगस्त/सितंबर में अनंत चौदस पर आयोजित किया जाता है।