‘कायाशोधन’ शब्द दो शब्दों ‘काया’ और ‘शोधन’ से मिलकर बना है। जहाँ काया का अर्थ है शरीह वहीं शोधन का अर्थ है सफाई, डीटौक्सीफिकेशन या सभी अशुद्ध और विषाक्त पदार्थों से शरीर की मुक्ति। कायाशोधन की प्रक्रिया में तीन मुख्य चरण होते हैं।
पहला चरण है डीटौक्सीफिकेशन। इसमें योग और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग होता है। प्रत्येक व्यक्ति को एक विशेष तकनीक की आवश्यकता होती है जो प्रत्येक व्यक्ति के शरीर पर निर्भर करता है, हालांकि कुछ ऐसे साधारण अभ्यास भी जो कोई भी कर सकता है।
दूसरा चरण है, शरीर को विषाक्त पदार्थों और अशुद्धियों से मुक्त करने के बाद शरीर का कायाकल्प करना। इस चरण का मुख्य उद्देश्य है शरीर इस तरह से तैयार हो कि शरीर के सभी अंग मिलजुल कर अच्छी तरह से काम करें। तीसरा और अंतिम चरण है, पोषण। इसमें रोगी को उसकी व्यक्तिगत भौतिक आवश्यकताओं के अनुसार आहार दिया जाता है। इस तरह के आहार में फल, सब्जियां और कुछ पेय पदार्थ होते हैं।
कायाशोधन मंदिर, जींद के उत्तर में 16 किमी दूर कसोहन में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् विष्णु ने इस स्थान पर स्नान कर कायाशोधन, लोकोद्दर को उत्पन्न किया था।