वराह संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘सूअर’। शास्त्रों के अनुसार यह भगवान् विष्णु के दस मुख्य अवतारों में से एक है जो उन्होंने अपने भक्तों को दुर्भाग्य से बचाने के लिए लिए थे।
ऐसा कहा जाता है कि दानव हिरन्यक्षप ने, पृथ्वी को मानव रूप में प्रदर्शित करने वाली, भूदेवी को चुरा लिया था। उस दानव ने पृथ्वी को समुद्र में छुपा दिया। इस कठिन परिस्थिति को देखते हुए भगवान् विष्णु एक सूअर के रूप में प्रकट हुए और पृथ्वी को समुद्र में से बचाया। वराह की मूर्ती को आम तौर पर इस तरह दिखाया जाता है जिसका सिर तो सूअर जैसा है और शरीर मानव जैसा।
भगवान् विष्णु को समर्पित एक मंदिर, जिसे वराह तीर्थ कहा जाता है, बराह गाँव में स्थित है। यह स्थान जींद से दस किमी दूर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान् विष्णु इस स्थान पर रुके थे जब उन्होंने सूअर का अवतार लिया था।
इसलिए इस पवित्र स्थल के तालाब में स्नान करने पर भगवान् विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति यहाँ रूकता है तो वह अग्नि मुख(स्तोम) के बराबर योग्यता प्राप्त करता है। अग्नि स्तोम, अग्नि देवता की प्रार्थना है जो कई दिनों तक की जाती है और एक जानवर के बलिदान से समाप्त होती है।