भोरामदेव मंदिर जिला मुख्यालय से 17 कि.मी की दूरी पर स्थित है। मोहक परिवेश के बीच, पत्थर को काटकर बनाया गया यह मंदिर बहुत शानदार लगता है। यह नागर शैली में बनाया गया है और यहां भगवान शिव को पूजा जाता है। मंदिर में शिवलिंग बहुत ही कलात्मक है जो राज्य भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसे 1089 ई. में फ़ानी नागवंश के राजा, गोपाल देव ने बनवाया था।
यह मंदिर खजुराहो मंदिर जैसा दिखता है और इसलिए यह छत्तीसगढ़ के खजुराहो के रूप में जाना जाता है। अपनी आकर्षक पृष्ठभूमि के अलावा, इसकी वास्तुकला भी बहुत अद्भुत है। मंदिर के दो भागों को इष्टिका और पत्थर से बनाया गया है। मंदिर के सामने एक निर्मल और शांत झील स्थित है।
यह पांच फुट ऊंचा है और मंदिर को 'मंड़प', 'अंत्राल' और 'गर्भा गृह' में विभाजित किया गया है। इस मंदिर की पश्चिम दिशा को छोड़कर बाकी सारी दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। शिवलिंग 'गर्भा गृह' पर स्थित है। मंदिर की बाहरी दीवार पर भगवान विष्णु, शिव और गणेश की मूर्तियां देखी जा सकती है।
शेर और हाथी की मूर्तियों मंदिर को एक शाही मंदिर की तरह दर्शाती हैं। इस मंदिर में उमा-महेश्वर, नटराज, नरसिंह, कृष्ण, नृत्य गणेश, कार्तिकेय, चामुंड़ा, सप्त-मत्रीका, लक्ष्मी-नारायण और कुछ अन्य देवताओं की मूर्तियां देखने मिलेगी। मंदिर की दीवारों पर राम कथा के चिह्न अंकित है।
दुनिया भर में विभिन्न कामुक मुद्रा की कामुक मूर्तियां प्रसिद्ध हैं। वे उस समय के लोगों की सामाजिक जीवन शैली को दर्शाती हैं। दीवारों पर पड़े हल्दी के निशान मंदिर में होने वाले विभिन्न पवित्र अनुष्ठान को प्रतिबिंबित करते हैं।