कैलाशहर त्रिपुरा के उत्तरी त्रिपुरा जिले का जिला मुख्यालय है। राज्य के दक्षिणी छोर पर स्थित इस जिले की सीमा बांग्लादेश से मिली हुई हैं। कैलाशहर एक ऐतिहासिक शहर है, तथा कई लोगों का मानना है कि इसकी पीढ़ियां 7 वीं सदी से चली आ रही हैं। ऊनाकोटि (सदियों से प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध) से नजदीकी रखने वाला यह शहर, कैलाशहर त्रिपुरी राज्य की प्राचीन राजधानी था।
कैलाशहर की धनी विरासत
ऊनाकोटि जोकि अपनी प्राचीन प्रस्तर शिलाओं के लिए प्रसिद्ध है,का कैलाशहर से गहरा संबंध है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, राजा जूझर फा (जिसने त्रिपुरब्द याने त्रिपुरी कैलेण्डर को शुरू किया था) का उत्तराधिकारी भगवान शिव का भक्त था। उसने छम्बुलनगर में मऊ नदी के तट पर महादेव का आराधना की थी। ऐसा माना जाता है कि कैलाशहर का मूल नाम छम्बुलनगर ही था।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कैलाशहर नाम 'हर' (भगवान शिव का एक अन्य नाम) तथा कैलाश पर्वत (भगवान शिव का निवास) के नाम पर पड़ा, तथा जो बाद में कैलाशहर में बदल गया। कैलाशहर नाम चलने लगा तथा यही नाम 7वीं सदी से तब से चला आ रहा है, जबसे त्रिपुरा शासक आदि-धर्मापा नें यहां एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था।
लोग जो आज कैलाशहर को समृद्ध बनाते हैं।
कैलाशहर वास्तव में एक छोटा सा शहर है, बल्कि यह एक नगर पंचायत शहर है। लेकिन इसकी भौगोलिक सीमाएं इसकी विविध आबादी पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती। बंगाली लोग यहां कैलाशहर में लंबे समय से रह रहे हैं तथा काफी लंबे समय से वे इस शहर की सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का हिस्सा रहे हैं। बंगालियों के अलावा, कैलाशहर में काफी पहाड़ी व विविध लोगों की आबादी है।
धर्म और उत्सव -कैलाशहर के जीवन का अभिन्न अंग
धर्म, उत्सव और सांस्कृतिक गतिविधियों कैलाशहर के जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। वर्ष के लगभग हर महीने में, शहर किसी न किसी त्योहार या सांस्कृतिक गतिविधि के लिए सज जाता है। चूंकि कैलाशहर वास्तव में एक धर्मनिरपक्ष स्थल है, इसलियें यहां हिंदु, मुसलिम, ईसाई तथा बौद्ध सद्भाव से रहते हैं,तथा बहुआयामी संस्कृति इसके कोने-कोने पर दिखाई पड़ती है। दुर्गा पूजा और काली पूजा कैलाशहर में सबसे उल्लास से मनाये जाने वाले त्योहार हैं। हालांकि, अन्य धार्मिक अनुयायियों की बढ़ती आबादी का भी शुक्रिया अदा किया जा सकता है, क्योंकि इस वजह से यहां ईद, बुद्ध पूर्णिमा और अन्य त्योहार भी काफी लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
कैलाशहर तथा नजदीकी पर्यटन स्थल
कैलाशहर एक सुंदर शहर है। इस सुंदर शहर में मंदिरों के साथ ही खूबसूरत हरे-भरे चाय के बागान भी हैं। कैलाशहर की यात्रा यहां स्थित लखी नरायन बरी 14 देवताओं का मंदिर या चौदह देवतार मंदिर तथा इससे सटे इलाके के 16 चाय बागानों को देखे बिना बिल्कुल अधूरी है।
लखी नारायण बारी:
लखी नारायण बारी 45 साल पुराना है तथा भारत में इसे एक प्राचीन स्मारक के रूप में गिना जाता है। यह भगवान कृष्ण को समर्पित है, और प्रभु की मूर्ति को यहां कृष्णानंद सेवायत द्वारा स्थापित किया गया है।
हब देवतार मंदिर:
14 विग्रहों का मंदिर या चौदह देवतार मंदिर में देवी देवताओं की 14 मूर्तियां हैं। अगरतला से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस चौदह मंदिर में जुलाई के महीने में होने वाली खर्ची पूजा में लोग खूब आते हैं।
चाय संपदा:
कैलाशहर में मंदिरों के अलावा शहर के आसपास के कई चाय बागान हैं। ज्यादातर चाय बागान निजी स्वामित्व में हैं तथा अपने स्वाद के लिये प्रसिद्ध हैं। यहां के उगने वाली चाय की लोकप्रियता इस बात में है कि वे जैविक प्रकृति के हैं।
कैलाशहर की यात्रा कुछ यादगार स्मारकों को देखे बिना अधूरी है। ज्यादातर उत्तर पूर्वी राज्यों में से अधिकांश की तरह ही, आदिवासी कलाकृतियां कैलाशहर में हैं,जिन्हें पर्यटक कैलाशहर से ले सकते हैं। राज्य की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए, कैलाशहर को भी एक पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। आज कैलाशहर में लोगों की काफी भीड़ जुटती है, जिनमें बहुत सारे लोग यहां भगवान कृष्ण तथा अन्य 14 देवी देवताओं का आशीष लेने के लिये आते हैं।
कैलाशहर यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय
कैलाशहर की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा मौसम सर्दियों का मौसम होता है जब तापमान नीचे आ जाता है।, लेकिन जलवायु नम बनी रहती है। कैलाशहर के आसपास के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा करने के लिए भी यह समय सबसे अच्छा समय होता है। कैलाशहर की यात्रा का एक और बेहतर समय बारिश के बाद का समय होता है जब चारों तरफ हरियाली फैली होता है।
कैलाशहर तक कैसे पहुंचे
कैलाशहर हवाई, सड़क और रेल के माध्यम से आसानी से पहुँचा जा सकता है