भीष्म कुंड, थानेसर में नरकाटारी में स्थित है जिसे भीष्मपितामह कुंड भी कहा जाता है। महाभारत के अनुसार, भीष्मपितामह, पांडवों और कौरवो के लिए श्रद्धेय थे, लेकिन महाभारत के युद्ध में उन्होने कौरवों का साथ दिया था। शास्त्रों के अनुसार, उन्हे एक वरदान मिला था कि जब अपनी इच्छाशक्ति के अनुसार जब तक चाहें जी सकते है और जब वह मरना चाहें तो मर सकते है। वह एक अजेय योद्धा थे और उन्हे पांडवों से विशेष लगाव था लेकिन फिर भी वह पांडवों के खिलाफ युद्ध में लड़े।
पांडवों के पास भीष्मपितामह से निपटने के लिए कोई उपाय नहीं था, इसलिए उन लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण से सलाह मांगी। भगवान श्रीकृष्ण को भीष्मपितामह की मृत्यु का रहस्य पता था। इसलिए, भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध में शिखंडी को साथ ले जाने की सलाह दी, जो न एक पुरूष था और न ही एक महिला, वह एक हिजड़ा था और भीष्म पितामह की मृत्यु किसी पुरूष या महिला के हाथों कभी नहीं हो सकती थी, क्योंकि वह महान योद्धा थे और सिर्फ योद्धाओं पर ही वार करते थे, शिखंडी पर वह वार नहीं कर सकते थे।
इस प्रकार, योजनाबद्ध तरीके से, अर्जुन, शिखंडी के पीछे खडे हो गए और उन्होने तीर चलाने शुरू कर दिए, इससे भीष्म पितामह घायल हो गए और उन्होने सभी अस्त्र - शस्त्र छोड़ दिए और युद्ध के दसवें दिन घायल होकर गिर गए।
बाद में, भीष्म पितामह को तीरों की शैय्या पर लिटा दिया गया और उन्हे कौरवों और पांडवो ने घेर लिया। तीरों की शैय्या पर लेटे हुए उन्हे प्यास लगी और उन्होने पानी पीने की मांग की, तब अर्जुन से जमीन पर तीर को मारा और वहां से पानी की धार निकली, जिससे भीष्म पितामह की प्यास बुझ गई।
वर्तमान में यह जगह भीष्मकुंड के नाम से जानी जाती है जो कुरूक्षेत्र में नाराकटारी में स्थित है। यहां पास में ही एक छोटा सा मंदिर है। यहां बनी हुई सीढि़यों को पुनर्निर्मित किया जा रहा है।