शंकर गोम्पा को शंकर मठ के नाम से भी जाना जाता है। यह, लेह से सिर्फ 3 किमी की दूरी पर स्थित है, और यहाँ तक पैदल चल कर पहुंचा जा सकता है। गोम्पा के अन्दर ‘एवालोकितेश्वर’, एक 'बोधिसत्व' या ‘आत्मज्ञानी जीव’ की एक प्रतिमा रखी गई है, जो समस्त बौद्धों की करुणा का प्रतीक है। इस प्रतिमा के ग्यारह सिर, एक हजार हाथ और प्रत्येक हाथ की हथेली पर आँखें है। प्राचीन वास्तुकला शैली में बनाए गए, चारों दिशाओं के संरक्षक के ये चित्र, प्रवेश द्वार पर रखे गए हैं।
मठ के दर्शन का समय सीमित है, जल्दी सुबह (भोर में) और शाम को, क्योंकि यह सिर्फ 20 बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो यहीं रहते हैं। ड्यू-खांग, को मठ में असेंबली हॉल के रूप में जाना जाता है, जिस तक एक सीढ़ी के माध्यम से पहुँचा जा सकता है जो सीधे दो दरवाजों के माध्यम से इसमें खुलती हैं।.
इस जगह की दीवारों और दरवाजों को, मंडलों, बौद्ध भिक्षुओं के लिय तय नियम क़ानून और तिब्बतन कैलेंडर से पूरी भव्यता के साथ चित्रित किया गया है। रिकॉर्ड के अनुसार, मठ पहले स्पितुक के मठाधीश का निवास स्थान था, ऊपर स्थित उनका कमरा, अतिथि कक्ष और पुस्तकालय भी देखा जा सकता है।