अवध के नवाब नसीर-उद-दौला ने नौ मंजिला इमारत के बारे में सोचा था, जिसका नाम वह नौखंडा रखना चाहते थे। वह चाहते थे कि यह टॉवर सबसे ऊंचा हो और दुनिया का आंठवा आश्चर्य बने, जिसे दुनिया में बेबलॉन के टॉवर या पीसा की मीनार जितनी ख्याति प्राप्त हो।
बाद में इस इमारत को बनाने का दरोमदार नवाब के बेटे और उत्तराधिकारी नवाब मुहम्मद अली ने संभाला, जिन्होने केवल सात मंजिल ही बनवा पाएं और 1840 में उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रोजेक्ट को बनाने के पीछे नवाब का एक और उद्देश्य था, वह चाहते थे कि इस टॉवर से वह पूरे शहर का नजारा देख सकें।
उनकी मृत्यु के बाद यह टॉवर खंडहर में बदलने लगा। लेकिन आज भी यह जगह उस काल की भव्यता और राजसी माहौल को बयां करती है। सतखंडा, हुसैनाबाद इमामबाड़ा के पास में ही स्थित है जो फ्रैंच और इटेलियन शैली के मिश्रण से बनी हुई है। इस सतखंडा इमारत में शानदार मध्ययुगीन डिजायन देखने को मिलती है।
इसे बनाने के पीछे एक कारण और है, कहा जाता है कि उत्तरप्रदेश के तत्कालीन गर्वनर को श्रद्धांजलि देने के लिए भी इसे बनाया गया था।