बिहार स्थित मोतीहारी शहर तीर्थ यात्रियों के साथ-साथ आम लोगों के लिए भी एक चर्चित पर्यटन स्थल है। यह राज्य की राजधानी पटना से 156 किमी दूर है।
मोतीहारी मुख्य रूप से ऐतिहासिक महत्व का पर्यटन स्थल है। यही वह जगह है जहां से महात्मा गांधी ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ पहली बार सत्याग्रह की शुरुआत की थी। इस शहर का विशेष ऐतिहासिक महत्व इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बना देता है।
शहर में शिक्षा को बढ़ावा देने का श्रेय भी महात्मा गांधी को ही जाता है। उन्होंने पास में ही एक स्कूल बनाने में स्थानीय लोगों की मदद की थी। मोतीहारी में एक बौद्ध स्तूप भी है, जिससे ढेरों बौद्ध पर्यटक भी इसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
इस स्तूप को मोतीहारी स्तूप के नाम से भी जाना जाता है। 104 फीट ऊंची यह संरचना नि:संदेह काफी भव्य मालूम पड़ती है। कई लोगों का मानना है कि वर्तमान का यह स्तूप एक बड़े स्तूप का अवशेष है।
मोतीहारी के बारे में एक और रोचक बात यह है कि महान लेखक जार्ज ऑरवेल यहीं पैदा हुए थे। आप चाहें तो जार्ज ऑरवेल का स्मारक भी घूम सकते हैं। महात्मा गांधी म्यूजियम और स्टोन पीलर यहां के असाधारण पर्यटन स्थल हैं।
मोतीहारी के पेपर फैक्टरी और सूगर मिल जैसे कई लघु उद्योग भी हैं। यहां का सूगर मिल बिहार में सबसे बड़ा है।
शिक्षण संस्थान, मिल और कारखाने के साथ-साथ गांधी संग्रहालय, झील और गांधी मैदान जैसे ऐतिहासिक जगहों और प्राकृतिक सुंदरता के कारण मोतीहारी कुछ बेहतरीन समय बिताना का अच्छा स्थान है।
कृषि की बात करें तो मोतीहारी लीची और मीठे आलू के उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां भीषण गर्मी और कड़ाके की ठंड पड़ती है। अगर हो सके तो आप बरसात के बाद मोतीहारी घूमने जाएं क्योंकि यह समय घूमने के लिए बहुत ही अच्छा रहता है।
मोतीहारी और आसपास के पर्यटन स्थल
मोतीहारी धार्मिक और प्राकृतिक स्थलों का संगम है। मोतीहारी जाने पर आप मोती झील, लौरिया, चाकिया, केसरिया, गांधी स्मारक, मेहसी और सीताकुंड जरूर घूमें।
कैसे पहुंचें
सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग के जरिए मोतीहारी पहुंचा जा सकता है। यहां का स्थानीय रेलवे स्टेशन बापूधाम मोतीहारी है जो महानगरों के साथ-साथ राष्ट्रीय राजधानी से भी रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।
घूमने का सबसे अच्छा समय
मोतीहारी के मौसम में गर्मी, बरसात और ठंड में बांट सकते हैं। यहां भीषण गर्मी पड़ने के साथ-साथ कड़ाके की ठंड भी पड़ती है।