मैसूर में शहर में होते हुए मैसूर जू को घूमना एक अच्छा अनुभव साबित हो सकता है। इस जू का निर्माण 1892 में महाराजा चामराजा वुडेयार ने करवाया था और इसकी गितनी भारत के कुछ बेहतरीन जूलॉजिकल गार्डन में होती है। करीब 250 एकड़ में फैले इस जू में कई स्तनपाई, सरीसृप और पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां भी देखी जा सकती है।
पहले इस जू का नाम पैलेस जू था और यहां शाही परिवार घूमने आया करते थे। हालांकि बाद में चामराजेन्द्र वुडेयार ने आम लोगों को भी इस जू में प्रवेश की अनुमति दे दी। 1909 में इस जू का नाम बदलकर चामराजेन्द्र जूलॉजिकल गार्डन रखा गया।मैसूर जू का इस्तेमाल कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम के लिए किया जाता है, जिसका उद्देश्य लुप्तप्राय: प्रजातियों की संख्या को बढ़ाना है।
इस जू में आप हाथी के बच्चे, जवान बंदर, जंगली बैल और तेंदुआ व बाघ के शावकों को देख सकते हैं। साथ ही यह जू बारबेरी शीप, जेब्रा, जिराफ, ईमू, चिंपांजी, दरियाई घोड़ा, कंगारू, बाघ और संगाई की ब्रीडिंग के लिए भी जाना जाता है। साथ ही आप यहां पिसूरी, चार सिंगों वाला चिकारा, कैरकैर, बिलाव कस्तूरी, नीगिरि लंगूर, चिंकारा, बिंटूरोंग और तेंदुआ सहित कई जानवरों की दुर्लभ प्रजातियों को देख सकते हैं।