नंजूनडेशवर मंदिर को श्री कंटेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह शिव मंदिर है और यह द्रविड़ शैली में बना है। पूर्वजों के अनुसार इस मंदिर में भगवान शिव का वास था। इस मंदिर को गंगा शासनकारों ने बनाया था और इसकी देख रेख होय्सला राजाओं ने की थी। इतिहासकारों का यह कहना है कि नंजुंडेश्वर मंदिर पर अर्पित कई प्रार्थनाओं के बाद टीपू सुल्तान का बीमार हाथी ठीक हो गया।
इसलिए टीपू सुल्तान और हैदर अली को नंजूनडेशवर मंदिर पर अटूट विश्वास था। स्थानीय लोगों का यह मानना है कि इस मंदिर के दर्शन से भक्तों के कष्टों का निवारण होता है। यहाँ साल में दो बार रथोत्सव मनाया जाता है। जिस दौड़ जात्रे भी कहा जाता है।
इस जात्रा में भगवान गणेश, श्री कंट॓श्वर, सुब्रमन्य,चंद्रकेश्वर और देवी पार्वती की मूर्तियों को अलग अलग रथों में स्थापित कर पूजा अर्चना कर के रथोत्सव की शुरुवात होती है। इस महोत्सव को देखने के लिए हजारों की भीड़ में लोग इखटा होते हैं। सच में यह मंदिर देखने योग्य है।