कालपथी मन्दिर, जिसे कालपथी विश्वनाथ स्वामी तार्थ के नाम से भी जाना जाता है, केरल के सबसे पुराने शिव मन्दिरों में से एक है। इसका इतिहास 14वीं शताब्दी का है और इसकी स्थापत्य शैली मनमोहक है जिसके कारण यह श्रृद्धालुओं और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है। पालक्कड़ शहर से कुछ ही किमी की दूरी पर यह मन्दिर कालपथी गाँव में स्थित है जो दक्षिण भारत में अपने सांस्कृतिक इतिहास के कारण 'दक्षिण के काशी' के नाम से भी जाना जाता है।
केरल के सबसे प्रसिद्ध मन्दिर महोत्सवों में से एक, कालपथी रथोत्सवम् को हर साल नवम्बर के महीने में आयोजित किया जाता है। रथोत्सवम् या रथ महोत्सव लाखों भक्तों को पालक्कड़ की ओर आकर्षित करता है और इस पर्व ने क्षेत्र मे पर्यटन को बढ़ावा देने मे महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गाँव की सड़कों से पूरी तरह से सजे हुये रथ को खींचे जाते हुये देखना एकदम मनमोहक होता है।
मन्दिर के आसपास के क्षेत्र में कई अग्राहरम् या तमिल ब्राह्मणों के पुराने रिहाइशी इलाके हैं जो केरल पर्यटन विभाग द्वारा शुरू किये गये विरासत संरक्षण परियोजना के भाग हैं।