भरतपुजा,नीला के नाम से प्रसिद्ध, केरल की दूसरी सबसे लंबी नदी है। वर्षों से यह नदी, विशेष रूप से उत्तरी केरल की संस्कृति का प्रतीक रही है। माना जाता है कि भरतपुजा ने मालाबार के लिए एक अनूठी संस्कृति के विकास में योगदान दिया है और कई क्षेत्रीय लेखकों की रचनाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है।
पोनानी में एक ज्वारीय मुहाना है जहां भरतपुजा नदी तिरुर नदी से मिलती है तथा हर वर्ष सीजन में हजारों प्रवासी पक्षी यहां आते हैं। यह न सिर्फ पक्षी विज्ञानियों के लिए बल्कि पक्षी प्रेमियों के लिए भी एक आदर्श स्थल है। गर्मियों के महीनों में नदी के ऊपर से गुजरते पक्षियों के समूह को निहारने का सुन्दर दृश्य कोई भी यात्री छोड़ना नहीं चाहेगा।
209 किमी लम्बी भरतपुजा न सिर्फ जल धाराओं का, बल्कि संस्कृति और विरासत का भी प्रवाह है। हालांकि गर्मियों में नदी सूख जाती है,लेकिन उदार मानसून इसे फिर से जल से भर देता है तथा इसके किनारे हरे-भरे हो जाते हैं। चाहे गर्मी हो,मानसून हो या सर्दियां हों, लकिन भरतपुजा अपनी भव्यता और महिमा से यात्रियों को खुशी प्रदान करती है।