इतिहास के अनुसार, 1760 ई. में एक प्रसिद्ध धार्मिक गुरु, स्वामी जवाहर गिरि जी यहां आएं। उस दौरान रूस्तम खान का शासन था। रूस्तम खान ने स्वामी जी के सम्मान में इस मंदिर का निर्माण करवाया, बाद में स्वामी जी ने अपने जीवन के आखिरी पल इसी मंदिर में बिताए और समाधि ले ली।
उनकी समाधि के बाद 1787 ई. में इसे एक धार्मिक स्थल में बदल दिया गया। बाद में कई गुरूओं ने यहां अपना बसेरा बनाया और धार्मिक कार्य किए। इन सभी गुरूओं में से एक स्वामी समाया नंद भी थे, वह सस्ंकृत के प्रकांड पंडित थे। उन्होने इसी परिसर में एक सस्ंकृत स्कूल खोला और लोगों को भाषा और धर्म का ज्ञान दिया।
वर्तमान समय में श्री दशनामी अखाड़ा मंदिर की देखभाल स्वामी सत्यदेव जी कर रहे है। रक्षाबंधन के समय यहां च्चरी मुबारक नाम का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते है।