विक्रमखोल एक पथरीला शरणास्थल या गुफा है, जो पर मध्य पाषाण काल (ईसा पूर्व 3000 से 4000 के बीच) की है। गुफाओं के अंदर की दीवारों में उत्कीर्ण शिलालेख या कला के कुछ प्रारूप हैं। संबलपुर के बाहर 81 किमी दूर स्थित इन गुफाओं और दुर्लभ शिलालेखों को सबसे पहले एक इतिहासकार के.पी. जायसवाल प्रकाश में लाये।
1933 में वह एक साधु के साथ गुफा तक पहुंचे उन्होंने जो खोज की उसे एक पुरातात्विक पत्रिका में 1935 में प्रकाशित किया गया। तब से शोधकर्ताओं ने विक्रमखोल का अध्ययन किया, लेकिन अब तक दीवारों पर शिलालेखों को समझ नहीं पाये।
माना जाता है कि पत्थर का शरणास्थल 37 मीटर लंबा और लगभग 8 मीटर ऊँचा है। गुफाएं वन क्षेत्र में स्थित हैं। क्षेत्र को संरक्षित रखने के लिये यहां तक जाने के लिये पक्की सड़कों और संचार क्षेत्र की स्थापना नहीं की गई। विक्रमखोल की एक यात्रा मानवता के सुदूर हजारों साल पुराने अतीत में आप्को निश्चित रूप से ले जायेगी।