ख्वाजा खिज्र इब्राहिम लोधी के शासन काल के एक सूफी सन्त थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर को संरक्षित करने के लिये इस कब्र का निर्माण 1522 से 1524 ई0 के दौरान हुआ था। कब्र की नक्काशी से यह जाहिर होता है कि ये दरिया खान सरवानी के पुत्र थे।
ख्वाजा खिज्र की कब्र उन चुनिन्दा इमारतों में से है जो लाल बलुये पत्थर के साथ-साथ कंकड़ के टुकड़ों से बनी है। यह एक चबूतरे पर निर्मित है और किनारों पर अतिरिक्त चौकोर बनावट से इसे मजबूती प्रदान की गई है।
कब्र तक सीढियों द्वारा पहुँचा जा सकता है जो एक केन्द्रीय रास्ते के द्वारा मेहराबों से होता हुआ प्रवेशद्वार की तरफ ले जाता है। कब्र के बाहरी हिस्से को कमल के तमगों, फूलों की आकृतियों मेहराबों से सजाया गया है। मस्जिद की छत को पीले, हरे और लाल जैसे विभिन्न प्रकार के रंगों से बने फूलों से सजाया गया है जो रंगो का मनमोहक मिश्रण प्रस्तुत करता है।
कब्र के दफनाने वाले भाग को अर्द्ध चन्द्राकार गुम्बदों से घेरा गया है और ऊपर से उल्टे कमल के फूल के छत्र द्वरा ढका गया है। यह कब्र चार एकड़ के हरे भरे बगीचे से घिरा है। इसे भरतीय पुरातत्व विभाग (ए एस आई) द्वारा संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित किया गया है।