गोमतेश्वर की 17.5 मीटर ऊंची मूर्ति आपको श्रवणबेलगोलामें कदम रखने से पूर्व ही दूर से दिखाई पड़ती है। 978 ई0 की यह मूर्ति इस बात का प्रमाण है कि श्रवणबेलगोलासदियों से सर्वाधिक महत्वपूर्ण जैन तीर्थस्थल रहा है।
मूर्तियां एवं लेख
श्रवणबेलगोलाका शाब्दिक अर्थ है श्वेत सरोवर का महन्त। मूर्ति के अलावा, श्रवणबेलगोलामें इतिहास की कुछ अन्य झलकियां भी दिखाई देती हैं। माना जाता है कि सम्राट चंद्रगुप्त नें वर्षों के युद्ध व राजकीय षडयंत्रों से थककर शांति की खोज में श्रवणबेलगोलाकी पहाड़ियों में शरण ली थी। उसने दक्षिण भारत में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
श्रवणबेलगोलाकई इतिहास सम्बन्धी चर्चाओं को जन्म देता है, क्योंकि यहां 600 से 700 ई0 के लेख मिले हैं। लगभग 800 ऐसे लेख हैं जो यहां गंगा, होयसल तथा वोदेयर जैसे वंशों का वर्णन करते हैं। ये लिखित दस्तावेज प्राचीन काल की जीवन शैली की जानकारी प्रदान करते हैं।
श्रवणबेलगोलाके लिए सबसे नजदीकी स्टेशन चन्नरयापत्न है। आप बंगलौर एवं मैसूर दोनों से चन्नरयापत्न के लिए बस ले सकते हैं। शेष यात्रा स्थानीय परिवहन के माध्यम से पूरी की जा सकती है।