चरार-ए-शरीफ , श्रीनगर से 28 किमी. की दूरी पर स्थित है जिसे हजरत शेख वली नूर - उद - दीन वली के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थल को 600 साल से पहले मुस्लिम सूफी संत हजरत शेख नूर - उद - दीन वली के सम्मान में बनवाया गया था। कहा जाता है कि हजरत शेख नूर - उद - दीन वली, सालार संज नामक महिला की कोख से जन्मे थे और जीवन के पहले भाग में नुंद रशी या शाहजानंद के रूप में जाने जाते थे।
ऐसा कहा जाता है कि हजरत शेख नूर - उद - दीन वली ने अपने जन्म के तीन दिन बाद ही अपनी मां का दूध पीने से इंकार कर दिया था। बाद में एक योगिनी जिसे लाल डेड कहा जाता था उसका स्तनपान करने को हजरत तैयार हुए थे, बाद में उस योगिनी ने हजरत को अपना उत्तराधिकारी बना लिया था।
वह कश्मीर के पहले शख्स थे जिन्होने इस घाटी में ऋषम का परिचय करवाया था। उन्होने अहिंसा, शाकाहार, सहिष्णुता, और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रचार किया था। उनके अनुयायी उन्हे आलमदार - ए - कश्मीर, शेख - उल - आलम, शरखेल - ई - रिशिया और शेख नूर - उद दीन के नाम से भी पुकारा करते थे।
हजरत शेख नूर - उद - दीन वली ने कविता के क्षेत्र में भी कई योगदान दिए। 1438 ई. में इनकी मृत्यु हो गई थी उस दौरान 2 दिन में लगभग नौ लाख अनुयायी इस श्राइन में आएं थे। इसके बाद उनके अवशेषों को चरार-ए-शरीफ में दफनाया गया। इस श्राइन को कई बार क्षति पहुंचाई जा चुकी है लेकिन इसके बाबजूद भी आज यह स्थल अपना धार्मिक महत्व रखे हुए है।