तिरुनल्लर पांडिचेरी में करैलकल शहर में स्थित एक छोटा सा गाँव है। यह जगह शनि ग्रह को समर्पित है। बस द्वारा करैलकल से आप आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं या फिर कार भी किराए पर ले सकते हैं। करैलकल तिरुनल्लर के बहुत पास है। तिरुनल्लर और करैलकल होते हुए त्रिची से सड़कमार्ग के द्वारा इस जगह पहुँचना आसान है। शनीश्वर मंदिर इस जगह का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है जो कि एक शनि मंदिर है। इस मंदिर में भगवान दरबारण्येश्वर स्थापित है।
यहाँ के देवता भगवान शिव के रूप में है। हर तीन सालों में एकबार शनि ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में जाता है और इस पवित्र दिन पर इस देवता की पूजा करने के लिए लाखों श्रद्धालु शनीश्वर मंदिर में आते हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में इस शहर का बड़ा योगदान है क्योंकि पच्छई पडिगम की कहानी जो कि एक भजन है, इसी जगह पर लिखा गया था। सालभर यह जगह ठंडी रहती है। साथ ही इस शहर में चारों ओर शांति है और नगर निगम के अधिकारियों द्वारा यहाँ का रखरखाव भी बहुत अच्छा है। शनीश्वर मंदिर के पास एक बहुत बड़ा टैंक भी है।
तिरुनल्लर का इतिहास
इस आहर का इतिहास बहुत ही रोचक है। पच्छई पडिगम के भजन में इस आहर की महिमा का बखान किया गया है। इस प्राचीन भजन में भगवान का गुणगान किया गया है। बहुत साल पहले यह शहर जैन धर्म के प्रभाव में था लेकिन जैन धर्म के लोग शहर में शैव संतो के आने से खुश नहीं थे।
राजा जैन धर्म से बिल्कुल भी खुश नहीं था और युवा शैव संत संबंधर के आने से उसे अपनी समस्याओं का समाधान करने में सहायता मिली थी। इस युवा संत ने कुछ शक्तियों का प्रदर्शन किया जिनसे राजा को अपने दर्द से उबरने में सहायता मिली।
आम लोगों के बीच राजा ने युवा संत की महिमा का प्रचार किया जिससे आम जनता उसकी महानता से अवगत हो गई। इसके अलावा इस युवा संत ने आम लोगों के सामने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और उन लोगों ने इसका लाभ उठाना शुरु कर दिया। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह दुःख की बात थी और उन्होंने शैवियों को चुनौती दे दी। जैन धर्म के लोगों ने उस चुनौती को स्वीकार किया और शैव धर्म की फिर से स्थापना हुई। इस महिमा को फिर से लिखा गया और तिरुनल्लर मंदिर का निर्माण किया गया।
तिरुनल्लर में और आसपास के पर्यटन स्थान
शनीश्वर मंदिर, श्री दरबारण्येश्वर मंदिर और भद्रकालियम्मा मंदिर तिरुनल्लर शहर के तीन प्रमुख आकर्षण हैं। शनीश्वर मंदिर श्री दरबारण्येश्वर मंदिर के भीतर है और हर साल हज़ारों तीर्थयात्री इस मंदिर मं आते हैं। यह दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली मंदिरों में से एक माना जाता है, क्योंकि स्थानीय लोगों का ऐसा विश्वास है कि जो लोग यहाँ कभी नहीं आएं उनकी इच्छाएं अधूरी रहती हैं।
भगवान की पूजा करने से पहले तीर्थयात्रियों को नाला तीर्थम में स्नान करना होता है। सालों से लोग ये परंपराएं निभाते आ रहे हैं। शनीश्वर मंदिर में देवता आशीर्वाद देने की मुद्रा में स्थापित है। श्रद्धालुओं का मानना है कि शनीश्वर देव देर कर सकते हैं लेकिन कभी इनकार नहीं करते।
श्री दरबारण्येश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है। स्वयंभू शिवलिंग भगवान दरबारण्येश्वर का शिवलिंग है। तिरुनल्लर वह पवित्र स्थान है जहाँ भगवान शिव ने भगवान ब्रह्मा को आशीर्वाद दिया था। धरपई घास इस मंदिर का पवित्र पौधा है। भद्रकालियम्मा मंदिर तिरुनल्लर शहर का एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर है। इसके अलावा यहाँ दो विशाल पवित्र रथ हैं। जुलूस के दौरान भक्तजन देवी देवताओं के दर्शन कर पाते हैं। इस मंदिर में पवित्र जल के कई टैंक हैं।
पास में स्थित अन्य नवग्रह मंदिर
अन्य सभी आठ नवग्रह मंदिर तिरुनल्लर के पास ही स्थित हैं। आप सूर्यनाइर कोइल(सूर्य ग्रह अथवा सूर्य भगवान के लिए), कंजनूर(श्शुक्र्र ग्रह अथवा सुकर्ण के लिए), अलंगुड़ी(बृहस्पति ग्रह अथवा गुरु के लिए), तिरुवेंकड़ु(बुध ग्रह अथवा बुध के लिए), वैदीश्वरन कोइल(मंगल ग्रह अथवा सेव्वई के लिए),तिरुनागेश्वर और कीझपेरुम्पल्लम(दो सर्प ग्रहों के लिए) और तिंगलूर (चंद्रमा के लिए) की यात्रा कर सकते हैं।
तिरुनल्लर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय
अक्तूबर से मार्च तक का समय तिरुनल्लर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा होता है क्योंकि साल के इस समय मौसम बहुत सुहावना होता है।
कैसे पहुँचे तिरुनल्लर
बस द्वारा करैलकल से आप आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं या फिर कार भी किराए पर ले सकते हैं।