दक्षिणी तिरुपति के रूप में जाना जाने वाला श्री वल्लभ मंदिर, ना सिर्फ देवता के पक्के भक्तों को बल्कि दुनिया भर से पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। यहां न केवल बहुमूल्य धार्मिक भावना है, बल्कि यह पर्यटकों की आंखों को सुख पहुंचाने का काम करता है।
कई उत्कृष्ट आकृतियों और दीवारों पर बने चित्रों के साथ यहां की प्राचीन मूर्तियां ज्यादातर एक ही चट्टान से बनाई गई हैं। 'उत्रास्रिबली' एक त्योहार है जो मार्च-अप्रैल में मनाया जाता है और यह 'केट्टुकज़ा' जुलूस के लिए प्रसिद्ध है। इस जुलूस में रंग-बिरंगे रथ, सुसज्जित हाथी होते हैं और पारंपरिक तालवाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
क्योंकि तिरुवल्ला की सड़कों पर कई मेले होते रहते हैं, इसलिए यहां का माहौल जोश से भरा रहता है। यह हरी भरी घास के समूहों और पेड़ों से घिरा रहता है। श्री वल्लभ मंदिर बाकियों से अलग है, क्योंकि यह केरल का एक्मात्र ऐसा मंदिर है, जहां अनुष्ठान की तरह प्रतिदिन कथकली किया जाता है।
इस मन्दिर का महत्व इस तरह का है कि, जो व्यक्ति विष्णु के भक्त नहीं भी हैं वे मूर्तियों और वास्तुकला से प्रभावित हो जाते हैं। 50 फुट ऊंचे पताका खंभे के साथ गिद्दों के देवता गरुड़ की मूर्ति, जो एक ही पत्थर की बनी हुई है, वास्तव में एक अद्भुत वास्तुकला का प्रतीक है।