अगर आपको शॉपिंग करना पसंद है और कपड़ों का रंग और उनके टेक्सचर से आपको प्यार है तो हमारी राय है कि आपको देश की इन जगहों पर जरूर जाना चाहिए। यहां आपको कई तरह के कपड़े मिलेंगें।
रोमांस और हनीमून के अलावा भी है ऊटी में बहुत कुछ करने के लिए
भारत एक ऐसा देश है जहां कई तरह के टेक्सटाइल मिलते हैं और आप कह सकते हैं कि इस क्षेत्र में भारत दुनिया का ब्रांड अंबैस्डर है। भारत में ऐसी कई जगहें हैं जो विशेष प्रकार का कपड़ा बनाने जैसे कांचीपुरम जिसे सिल्क की साड़ी के लिए जाना जाता है, महेश्वर जिसे महेश्वरी साड़ी के लिए जाना जाता है और ऐसे ही कई तरह के कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है।
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आज हम आपको देश की कुछ ऐसी ही प्रसिद्ध जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए एक नज़र डालते हैं ऐसी है जगहों पर जहां आप अपनी अगली छुट्टियां भी बिता सकते हैं।
बागरू - राजस्थान
जयपुर से एक घंटे की दूरी पर स्थित छोटा सा कस्बा बागरु इंडिगो, बैंगनी और टॉप के रंगों में लिपटा हुआ है। इसे मड ब्लॉक प्रिटिंग टेकनीक के लिए भी जाना जाता है। ये काम स्थानीय समुदाय दाबु द्वारा किया जाता है। इसमें नीबू, मिट्टी और नैचुरल गम और चाफ से पेस्ट बनता है। यहां फैब्रिक को नैचुरल रंगों में डाई कर हाथ से प्रिंट और बुनाई की जाती है। सबसे खास बात है कि कलाकार इस पर अपने हस्ताक्षर भी करते हैं जिसे बड़ी सावधानी से ज्यामितीय पैटर्न बनाया जाता है जो सिर्फ विशेषज्ञों को ही नज़र आता है।
पाटन - गुजरात
पटोला के डबल इकत सिल्क को बुरी नज़र से बचाने वाला और इसे पहनने वाले के लिए भाग्यशाली कहा जाता है। इस फैब्रिक पर समरूप डिजाइन होते हैं जोकि गुजरात की पहचान हैं और दिखने में ये काफी जादुई दिखते हैं।
पटोला को लाल और हरे रंग में बुनकर उस पर ज्यामितीय पैटर्न बनाया जाता है जिसमें हाथी, तोता, तितली और फूल शामिल हैं। इस कपड़े से बनी साडियां काफी महंगी होती हैं और इसको पाने के लिए आपको एक साल या 6 महीने का इंतज़ार करना पड़ सकता है। एक साड़ी को ही बनाने में दो या दो से ज्यादा हस्तशिल्पों की जरूरत पड़ती है।
कांचीपुरम - तमिलनाडु
कांचीपुरम का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले सुंदर सिल्क की साड़ी का ही ख्याल आता है। शुद्ध मलबैरी सिल्क के धागे की बुनाई कर सिल्क की साड़ी बनाई जाती है। हाथ से बुनी इन साडियों की चौड़ी बॉर्डर होती है जिस पर चैक, धारियां और फ्लोरल प्रिंट होता है। इन साडियों पर बनाए गए डिज़ाइन दक्षिण भारत के मंदिरों पर पाए गए शास्त्रों से प्ररित है जोकि महाभारत और रामायण युग के हैं।
कांचीपुरम साड़ी की सबसे खास बात ये है कि इसकी बॉडी और बॉर्डर को अलग-अलग बुना जाता है और बाद में बड़ी बारीकी से इसे इंटरलॉक किया जाता है। बुनाई को ये जोड़ इतना मजबूत होता है कि अगर साड़ी फट भी जाए तो भी बॉर्डर, साड़ी से अलग नहीं होता है। यही खासियत इसे अन्य सिल्क साडियों से अलग बनाती है।
सुआलकुची - असम
मेखेला चादोर पहनने में काफी आरामदायक होता है। मेखेला को स्वदेशी रेशम जिसे मुगा और पेल पट सिल्क कहते हैं, उसे बुनकर बनाया जाता है। साड़ी पर लोकल फूल, वाइनख् मोर और तितली और काज़ीरंगा के राइनो के चित्र बनाए जाते हैं। ये डिजाइन आपको अहोम राजवंश की याद दिलाएंगें और इन पर आपको पारंपरिक गहनों का प्रभाव भी देखने को मिलेगा।
बगलकोट - कर्नाटक
बगलकोट जिले के इल्काल से इस साड़ी को ये नाम मिला है। इस जगह पर साडियां कई तरह के रंगों में आती हैं जिन्हें टॉप टेनी तकनीक से तैयार किया जाता है। इसमें बॉर्डर और साड़ी की बॉडी और पल्लू को अलग से जोड़ा जाता है और इसमें सिल्क और आर्टिफिशियल सिल्क का प्रयोग होता है। इन साडियों पर सदियों पहले के चालुक्य युग की एंब्रॉयड्री की जाती है।
बिशनुपुर - पश्चिम बंगाल
सिल्क से बनी बलुचरी साडियां वाकई में सबसे अलग हैं और ये भारतीय इतिहास और पुराणों को एक श्रद्धांजलि हैं। साड़ी के बॉर्डर और पल्लू पर मुरशीदाबाद नवाब के कोर्ट के दृश्यों के साथ ब्रिटिशों के अस्तबलों के घोड़े और रामायण और महाभारत के दृश्य बनाए जाते हैं।
संबालपुर - ओडिशा
ऐसा कहा जाता है कि प्रामाणिक संबलपुरी इकत का रंग कभी फीका नहीं पड़ता है। ये साड़ियां सिल्क और सूती में बुनी जाती हैं और इसमें टाई डाईड धागे का प्रयोग कर साड़ी के पीछे नारंगी, गुलाबी और पीले और काले रंग के डिज़ाइन बनाए जाते हैं। ये डिजाइन स्थानीय मंदिरों की नक्काशी के पैटर्न और चक्र से लिए गए होते हैं। इस पर वन्यजीव और समुद्रीजीवों की तस्वीर भी होती है।
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
भारत में कई दुल्हनें अपनी शादी के दिन वाराणसी की सिल्क साड़ी पहनती हैं। ये साडियों फ्लोरल डिजाइन, मोर और अन्य कई तरह के पैटर्न बने होते हैं जो आपको मुगल काल, औपनिवेशिक काल और उससे पहले के युग की याद दिला देंगें। ये साड़ी भारत में सबसे बेहतरीन मानी जाती हैं।
PC:Ekabhishek
महेश्वर - मध्य प्रदेश
महेश्वरी साड़ी को सूती कपड़े से बुनकर और बॉर्डर को सूरत की जरी से बनाया जाता है। ये साडियां सिल्क और कॉटन का मेल होती हैं। बॉर्डर पर ज्यामितीय पैटर्न में शहर के घाटों का नक्शा और मंदिरों की रूपरेखा बनी होती है जोकि हर एक साड़ी को एक खास पहचान और ऐतिहासिकता प्रदान करती है।
पोचमपल्ली - तेलंगाना
भूदन पोचमपल्ली गांव को सूती और सिल्क के कपड़े पर सिंगल और डबल इकत पैटर्न बनाने के लिए जाना जाता है। यहां के बुनकर सामान्य सी बुनाई को भी अद्भुत बना देते हैं। इस क्षेत्र में इकत की शैल 1900 में आई थी और नालगोंडा जिले के कई गांवों ने इस शेली को अपनाया और कई रंगों को अपनी सोच के अनुसार मिला दिया। तभी से पोचमपल्ली गांव डबल इकत का प्रमुख केंद्र माना जाता है।