मुम्बई के रिहायशी इलाके मालाबार हिल्स के पास ही स्थित मुम्बई के लिफ्ट वाले शिव बाबा जिन्हें यहाँ बाबुलनाथ जी के नाम से पुकारा जाता है। सदियों से यहाँ विस्थापित बबूल देवता रोज़ सैकड़ों भक्तों को आशीर्वाद दे लोगों की इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। रोज़ सैकड़ों की संख्या में भक्तों की भीड़ ऊंचाई पर स्थापित महादेव जी के इस अद्वितीय रूप के दर्शन करने को आती है।
गिरगांव चौपाटी के निकट ही छोटी पहाड़ी पर स्थित बाबुलनाथ जी का मंदिर शहर के प्राचीन और विख्यात मंदिरों में से एक है। यहाँ के महंत के मुताबिक पहले कई सालों तक कुछ चंद लोग ही यहाँ दर्शन को आते थे, बस कुछ ही भक्त अपनी मनोकामनाएं लाते थे पर अब तो भक्तों की भीड़ प्रातःकाल से ही देखने लायक बनती है। कई भक्तगण यहाँ पर गुप्तदान कर मंदिर के जीर्णोद्धार के काम में भी हाथ बंटा रहे हैं।
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सोमवार वाले दिन भक्तों की भीड़ और भक्ति दोनों ही देखने लायक होती है। अपनी अपनी मनौतियों को ले भगवान शिव जी की भक्ति में पूरे दिन भक्तगण लीन रहते हैं। शिवरात्रि वाले दिन और सावन के पूरे महीने आसपास के पर्यटक भी इस अद्वितीय मंदिर के दर्शन करने श्रद्धाभाव के साथ पधारते हैं।
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चलिए आज इसी श्रद्धा भक्ति के साथ चलते हैं हम मुम्बई के प्राचीन और विख्यात मंदिर बाबुलनाथ जी के मंदिर की ओर उनकी कुछ तस्वीरों के साथ।
बाबुलनाथ मंदिर
छोटी सी पहाड़ी पर स्थित यह अद्वितीय और प्राचीन मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है। नगर के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर के प्रमुख देवता शिव जी हैं, जो यहाँ बबूल के पेड़ के देवता के रूप में विराजमान हैं।
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बाबुलनाथ मंदिर
कहा जाता है कि यह मंदिर पहले हमेशा वीरान रहता था। भक्तगण कई सीढ़ियाँ और ऊंचाई पर चढ़कर महादेव जी के इस विशेष रूप के दर्शन करने आते हैं।
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मंदिर का इतिहास
वैसे तो मंदिर को लेकर कोई पक्के सुबूत अब तक किसी के हाथ नहीं लगे हैं मगर कुछ पुराने विश्वासों में विशवास रखने वाले बताते हैं कि जहाँ बाबुलनाथ मंदिर स्थित है वहां किसी ज़माने में घना जंगल हुआ करता था।
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मंदिर का इतिहास
मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर की कथा लगभग 200 साल पुरानी है जब कई चरवाहे इस ज़मीन पर अपने पशुओं को चराने लेकर आते थे। पशुओं को चरने के लिए वे खुरपी द्वारा उनके लिए घास भी खोदते थे और जब भी कभी खुरपी की धार ख़त्म हो जाती थी तो वे उसे वहां एक पत्थर पर घिस देते थे।
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मंदिर का इतिहास
उन्हीं में से एक चरवाहे को एक रात स्वप्न में शिव जी के दर्शन हुए और उसने ये सारी बातें जाकर अपने चरवाहे मित्रों को बताई। स्वप्न की कथा सुनने के बाद सबने मिलकर उस पत्थर के पास खुदाई की जहाँ एक शिवलिंग निकला और इसी शिवलिंग के चारों ओर चबूतरा बनाकर इसे पूजने लग गए।
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मंदिर का जीर्णोद्धार
जब महादेव जी के इस रूप की पूजा करने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होने लगीं तो अन्य लोगों और अन्य भक्तों की भी आस्था शिव जी के इस रूप में और बढ़ने लगी। मंदिर के प्रति आस्था रखने वाले कई भक्तों ने मिलकर इस मंदिर को विशाल रूप दिया। किसी ने संगमरमर के पत्थर से मंदिर को बनाया तो किसी ने इसकी प्राचीर बनवाई।
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मंदिर का जीर्णोद्धार
मंदिर के निर्माण के साथ-साथ भगवान शिव जी के परिवार के अन्य सदस्यों; गणेश, कार्तिकेय, पार्वती, नंदी आदि की प्रतिमाओं को जयपुर से मंगवाकर विराजित कर दिया गया। मंदिर परिसर में आप जैसे-जैसे ऊपर चढ़ेंगे आपको एक पुराना पीपल का विशालकाय पेड़ इमारत से लिप्त मिलेगा। परिसर में ही एक पुराना कुआँ भी स्थित है।
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राजा भीमदेव का समय
एक अन्य कथा के मुताबिक बाबुलनाथ मंदिर के शिव लिंग और अन्य मूर्तियों को हिन्दू राजा भीमदेव द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था। सदियों पहले मंदिर ज़मीन में कहीं दफ़न हो गया था और अपना अस्तित्व खो चुका था। मंदिर की मूर्तियों को फिर से 1700-1780 शताब्दी के दौरान खोद कर खोज निकाला गया जिसके बाद 1780 में पहले मंदिर का निर्माण हुआ।
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राजा भीमदेव का समय
दोबारा से खोज निकाले गए मूर्तियों में शिवलिंग, हनुमान जी की मूर्ति, गणेश जी की मूर्ति, पार्वती जी की मूर्ति और एक अन्य भगवन की मूर्ति शामिल थीं जिनमें से 4 मूर्ति अब तक मंदिर में विराजमान हैं पर पांचवी अन्य मूर्ति समुद्र में ही डूब गई क्यूंकि उसे जब खोद कर निकाला गया था तब वो पूरी तरह से टूटी हुई थी।
Image Courtesy:Christian Haugen
राजा भीमदेव का समय
जब यहाँ सबसे पहला मंदिर बना था तब यह ज़मीन पारसी संप्रदाय के अधीन आती थी। इसलिए इस मंदिर के साथ ही आप कई जैन मंदिरों के दर्शन भी कर पाएंगे।
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राजा भीमदेव का समय
मंदिर के परिसर में 5 दखमा(पारसी लोगों का विश्रामालय) थे और जब मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था तब इन्होंने(पारसी लोगों) ने इसका कड़ा विरोध किया। यह विरोध लगभग सन् 1800 तक चलता रहा, जब तक न्यायलय का फैसला मंदिर के पक्ष में नहीं आ गया।
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राजा भीमदेव का समय
जैसा कि यह मंदिर ऊंचाई पर बना हुआ है, इसलिए यहाँ पहुँचने के लिए लिफ्ट की सुविधा भी उपलब्ध है। इस लिफ्ट के ज़रिये मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको निम्न शुल्क भी अदा करना होता है।
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राजा भीमदेव का समय
मंदिर परिसर में पर्यटकों को तस्वीर खींचने की अनुमति है पर मंदिर के मुख्य परिसर में नहीं है। मंदिर परिसर का रख-रखाव बेहतरीन ढंग से किया गया है।
Image Courtesy:Christian Haugen
राजा भीमदेव का समय
यहाँ के खम्बों और दीवारों पर शानदार नक्काशी का कार्य पर्यटकों को अपनी ओर खूब लुभाता है। यहाँ बनी इन मूर्तियों को देख आप उस समय के शिल्पकारों की अद्भुत कला का खूबसूरत चित्रण कर सकते हैं। दीवारों पर रंग बिरंगे चित्र बनाये गए हैं।
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मंदिर के पास ही स्थित अन्य आकर्षण
भगवान शिव जी के अद्भुत दर्शन के बाद आप मंदिर के पास ही बसे मुम्बई के अन्य आकर्षणों की सैर भी आराम से कर सकते हैं। यहाँ से मालाबार हिल्स का आकर्षक दृश्य पर्यटकों का ध्यान बार-बार अपनी और खींचता है।
Image Courtesy:Christian Haugen
मंदिर के पास ही स्थित अन्य आकर्षण
मंदिर के निकट ही बसे अन्य आकर्षक केंद्र हैं; हैंगिंग गार्डन, बाणगंगा,वालुकेश्वर मंदिर, चौपाटी बीच और कमला नेहरू पार्क।
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