झाँसी मुख्य रूप से रानी लक्ष्मीबाई के कारण प्रसिद्ध है जिन्होनें स्वतंत्रता के लिए 1857 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध पहली लड़ाई लड़ी। रानी लक्ष्मीबाई ने हाथ में तलवार ले कर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे और जीतेजी फिरंगियों को किले में घुसने नहीं दिया।आज भी बच्चे इन पंक्तियों को बड़े ही गर्व से गाते हैं।
'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी'
कभी यह किला हुआ करता था तोपों की खान...छुपा है इसमें अरबों का खजाना
झाँसी को उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का प्रवेशद्वार कहा जाता है। चंदेलवंश के शासन के दौरान इसका वैभव अधिक था परंतु 11 वीं शताब्दी के आसपास उनके साम्राज्य के पतन के बाद इसकी चमक कम होती गई। 17 वीं शताब्दी के दौरान राजा बीर सिंह देव के शासनकाल के दौरान इसका पुन: उत्थान हुआ - ऐसा माना जाता है कि यह राजा मुग़ल बादशाह जहाँगीर के निकट था।
इस मंदिर में मुर्दा हो जाते हैं जिन्दा..तो वहीं महिलायों को होती हैं पुत्र रत्नप्राप्ति
झाँसी में रहते हुए आप अनेक पर्यटन स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं जिसमें महाराजा गंगाधर राव की छतरी, गणेश मंदिर और महालक्ष्मी मंदिर शामिल हैं। वर्तमान में ही प्रारंभ हुआ झाँसी महोत्सव आपको इस क्षेत्र की कला और शिल्प का आनंद उठाने का अवसर प्रदान करता है।
झांसी किला
झांसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई. में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चांद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मंदिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है। PC: Shahrukhalam334
झांसी संग्रहालय
झांसी किले में स्थित यह संग्रहालय इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसंद स्थान है। यह संग्रहालय केवल झांसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक प्रस्तुत करता है। यहां चन्देल शासकों के जीवन से संबंधित अनेक जानकारियां हासिल की जा सकती हैं । यहां पर हथियार, मूर्तियां, राजसी कपड़े, चित्र आदि देखने को मिलते हैं जो स्वयं इतिहास की कहानी कहते हैं।
गणेश मंदिर
झांसी की पुरानी बजरिया में स्थित गणेश मंदिर रानी की जिंदगी की सबसे अहम जगह थी। बचपन में मनुकर्णिका नाम से जानी जाने वाली लक्ष्मीबाई के विवाह की रस्में इसी मंदिर में हुईं थीं। वो यहीं झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ विवाह के बंधन में बंधी थीं।PC: Prasann kanade
महालक्ष्मी मंदिर
झाँसी के राजपरिवार के सदस्य पहले श्री गणेश मंदिर जाते थे जहा पर रानी मणिकर्णिका और श्रीमंत गंगाधर राव नेवालकर की शादी हुई फिर इस महालक्ष्मी मंदिर जाते थे। 18 वीं शताब्दी में बना यह भव्य मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है। यह मंदिर लक्ष्मी दरवाजे के निकट स्थित है।यह देवी आज भी झाँसी के लोगो की कुलदेवी है क्योंकि आदी अनादि काल से यह प्रथा रही है कि जो राज परिवार के कुलदेवी और कुलदैवत होते है वही उस नगरवासियों के कुलदैवत होते है तो झाँसी वालो के मुख्य अराध्य देव गणेशजी और आराध्य देवी महालक्ष्मी देवी है। झाँसी के राजपरिवार के ये कुल देवता है।
गंगाधर राव की छतरी
लक्ष्मी ताल में महाराजा गंगाधर राव की समाधि स्थित है। 1853 में उनकी मृत्यु के बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने यहां उनकी याद में यह स्मारक बनवाया।