कर्नाटक का उड़ुपी जिला समुद्रतटीय क्षेत्र है जो अपने खूबसूरत मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। इसके समुद्रतट और जंगल हर किसी को आकर्षित करते हैं। उड़ुपी सबसे ज्यादा अपने खाने और होटलों के लिए सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है।
कराना है बच्चों को भारत की संस्कृती से रूबरू तो जायें यहां..
उडुपी के एक ओर अरब सागर तो वहीं दूसरी ओर पश्चिमी घाट हैं। हिंदुओं के लिए ये एक पवित्र शहर है। उडुपी का श्री कृष्ण मंदिर और अष्टमतास मंदिर काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा ये भारत का सबसे प्राचीन धार्मिक शिक्षा केंद्र भी है।
बेंगलुरू से देवरायनदुर्ग का सुहाना सफर
माना जाता है कि उडुपी को यह नाम तुलु नाम ओडिपु से मिला है। उड़ुपी दक्षिण कन्नड़ जिले का हिस्सा है। 1997 में उडुपी, कुंदापुर और करकाला दक्षिण कन्नड़ जिले से अलग हुआ करते थे।
उडुपी आने का सबसे सही समय
मार्च से मई के महीने में गर्मियों में उडुपी में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है। साथ ही इस समय उमस भी बहुत बढ़ जाती है। मॉनसून यानि जून से सितंबर तक 4000 मि.मी तक बारिश होती है। इस दौरान तेज हवाएं भी चलती हैं।
सर्दियों में दिसंबर से फरवरी तक तापमान 20 डिग्री सेल्सियस रहता है। इसलिए उड़ुपी घूमने के लिए सर्दी का मौसम सही रहता है।
Pc: Anuragg7990
कैसे पहुंचे उडुपी
वायु मार्ग द्वारा : उडुपी से मैंगलोर इंटरनैशनल एयरपोर्ट सबसे निकट है। बैंगलोर से यहां के लिए हर दो घंटे में एक फ्लाइट निकलती है। फ्लाइट में 50 मिनट का समय लगता है। मैंगलोर से उड़ुपी लगभग 54 किमी दूर है।
रेल मार्ग द्वारा :उडुपी का अपना रेलवे स्टेशन है। करवार एक्सप्रेस ट्रेन नंबर 16523 बैंगलोर से उड़ुपी तक सप्ताह के सातों दिन चलती है।
सड़क मार्ग द्वारा : बैंगलोर से उडुपी तक तीन रूट बनते हैं।
रूट 1 : बैंगलोर - चन्नापटना - सकलेशपुर - मैंगलोर - एनएच 75 से उडुपी।
406 किमी के इस सफर को तय करने में 7 घंटे 32 मिनट का समय लगता है।
रूट 2 : बैंगलोर - टुमकुर - हिरियुर - तीर्थहल्ली - एनएच 48 से उडुपी।
438 किमी के इस सफर में 8 घंटे 47 मिनट का समय लगता है।
रूट 3 : बैंगलोर - मैसूर - मदिकेरी - मैंगलोर - एनएच 275 से उड़ुपी।443 किमी की इस यात्रा में 9 घंटे 9 मिनट का समय लगता है।
दूरी कम होने के कारण पहले रूट पर समय बी बचत होगी इसलिए आपको पहले रूट से ही आना चाहिए। अपनी यात्रा की शुरुआत आप बैंगलोर से चन्नारायपटना की ओर कर सकते हैं। इसकी बैंगलोर से दूरी 146 किमी है। ढाई घंटे में आप चन्नारायपटना पहुंच जाएंगें। रास्ते में आप वोक्कालिगा समुदाय का प्रमुख धार्मिक केंद्र आदिचुनचुनागिरी मठ भी देख सकते हैं।
श्रावणबेलगोला
जैन धर्म के लोगों का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है श्रावणबेलगोला। ये 57 फीट लंबे बाहुबली की मूर्ति के लिए मशहूर है। ये मूर्ति दुनिया की सबसे लंबी मोनोलिथिक पत्थर की मूर्ति है। Pc:Ananth H V
सकलेश्पुर
आपका अगला स्टॉप होगा सकलेश्पुर जोकि यहां से 76.6 किमी की दूरी पर है और इसमें आपको एक से डेढ़ घंटे का समय लगेगा। ट्रैकिंग पर जाने के लिए सकलेश्पुर एक खूबसूरत जगह है। हरे-भरे सकलेश्पुर का आखिरी बिंदु कुक्के सुब्रमन्या है। सकलेश्पुर में आप जेनुक्कल गुड्डा पर हाइकिंग भी कर सकते हैं। सकलेश्पुर का काफी खूबसूतर झरना है मांजेहल्ली। भगवान शिव को समर्पित प्राचीन सकलेश्वर मंदिर भी बहुत लोकप्रिय है। से होयसालन शैलली में बना है।PC:L. Shyamal
मैंगलोर
सकलेश्पुर से 130 किमी की दूरी पर स्थित है मैंगलोर जोकि उडुपी के रास्ते में अगला स्टॉप है। यहां पहुंचने में आपको 3 घंटे का समय लगेगा। कर्नाटक का पनामबुर तट सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। अप्रैल के दौरान यहां पर काइट उत्सव का आयोजन भी होता है।
दलित लोगों को कुछ मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता था इसलिए उनके लिए यहां पर कुदरोली गोकरनाथ मंदिर बनाया गया था। इस मंदिर में भगवान शिव की गोकरनाथेश्वर के रूप में पूजा होती है।
कादरी मंजुनाथ मंदिर पर बौद्ध स्थापत्यकला का प्रभाव दिखाई देता है। इस मंदिर में भगवान शिव को मंजुनाथ के रूप में पूजा जाता है। कभी-कभी पनामबुर तट पर बहुत भीड़ रहती है। उल्लाल तट पर आप थोड़ी शांति का अनुभव कर सकते हैं।Pc:Nithin Bolar k
सुल्तान बैटरी
टीपू सुल्तान द्वारा बनाया गया वॉचटॉवर है सुल्तान बैटरी। यहां से टीपू सुल्तान गुरपुर नदी को देखा करते थे। इस इमारत को देखकर ये वॉचटावर से ज्यादा एक खूबसूरत किला दिखाई पड़ता है। हालांकि, अब ये नष्ट हो चुका है। मैंगलोर के सोमश्वर और तन्नीर भावी भी अन्य खूबसूरत तटों में से एक हैं।
मंगलादेवी भी अन्य महत्वपूर्ण मंदिर है जिसका नाम मैंगलोर से ही पड़ा है। मैंगलोर में आप सैंट एलोयसिअस चैपल, रोसारियो कैथेड्रल जैसी कुछ जगहें भी देख सकते हैं।
मैंगलोर से उडुपी 56 किमी दूर है जिसमें आपको एक घंटे का समय लग सकता है।pc: Premnath Kudva
कृष्ण मंदिर
उडुपी अपने कृष्ण मंदिर के लिए भी लोकप्रिय है। उड़ुपी कृष्ण मठ को 13वीं शताब्दी मे माधवचार्य द्वारा बनवाया गया था। माना जाता है कि दुनियाभर में मशहूर उड़ुपी व्यंजन का उद्गम इसी मंदिर से हुआ थ। मंदिर के पुजारी भगवान को स्वादिष्ट और स्वच्छ भोग लगाते हैं।
यहां का डोसा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। लोगों ने उडुपी खाने की विधि को जानना शुरु किया और इस तरह ये व्यंजन दुनियाभर में मशहूर हो गए।
16वीं शताब्दी में महान कवि कनकदास को दलित होने के कारण इस मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। मंदिर में प्रवेश ना करने पर उन्होंने एक खिड़की बनाकर भगवान के दर्श्न किए थे। उन्हें सिर्फ भगवान कृष्ण की पीठ ही दिखाई देती है। कहा जाता है कि तक भगवान कृष्ण खुद कनकदास के लिए पीछे मुड़े थे। इस घटना पर कनकदास ने गीत भी गाया है। आज इस खिड़की को कनाकना किंदी कहा जाता है।
अष्टमतास को द्वेता स्कूल के प्रचार के लिए माधवचार्य ने स्थापित किया था। इसके आठ मठ हैं पेजावर, पलिमरु, अदमरु, पुट्टिगे, सोढ़े, कनियुरू, शिरूर और कृष्णपुरा।
उडुपी में ही सिंडिकेट बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक की शुरुआत हुई थी।
Pc:Shravan Kamath94
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर
भगवान कृष्ण को समर्पित इस मंदिर में उनकी शिशु के रूप में मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर में साहित्य के रूप दस साहित्य का जन्म हुआ था।
इस मंदिर में भगवान के दर्शन एक खिड़की से किए जाते हैं जिसमें नौ छेद हैं। इसे नवग्रह कितकी कहा जाता है। सप्ताहांत पर मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। इस मंदिर का प्रसाद काफी स्वादिष्ट होता है। PC: Avinashisonline
समुद्रतट
कौप बीच, माल्पे बीच, त्रासी मरावंथे बीच, मट्टु बीच उड़ुपी के कुछ खूबसूरत और लोकप्रिय तटों में से एक हैं। इन तटों पर आप छोटी सी पिकनिक का मज़ा ले सकते हैं। यहां पर आप सर्फिंग, सेलिंग और राफ्टिंग भी कर सकते हैं।PC:vivek raj
हस्तशिल्प हेरिटेज गांव
मणिपाल में स्थित हस्तशिल्प एक गांव है जहां पंरपरा, मूल्यों और इतिहास को कलाकृतियों, कला और इमारतों के रूप में रखा गया है। गांव में लोक कला पर आधारित एक संग्रहालय भी है।
Pc: Subhashish Panigrahi
सैंट मैरी द्वीप
यही वो जगह है जहां से सबसे पहले वास्को डी गामा ने भारत में कदम रखा था। कर्नाटक के इस छोटे से तट पर सफेद रंग की रेत बिखरी हुई है। सैंट मैरी द्वीप चार द्वीपों कोकोनट आईलैंड, साउथ आईलैंड, नॉर्थ आईलैंड और दरिया बहादुरगढ़ आईलैंड से मिलकर बना है। इन द्वीपों पर पर्यटन अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया है।
PC: Ashwin06k
कारंठ स्मारक भवन
ज्नानापीठ पुरस्कृत शिवाराम कारंठ संग्रहालय उड़ुपी के कोटा गांव में स्थित है। इस संग्रहालय को बनाने के पीछे का उद्देश्य कारंठ के जन्मस्थान पर उनकी स्मृतियों को संजोकर रखना है। इसमें एक रंग मंदिर, किताबों का पुस्तकालय और बच्चों के लिए बाल भवन और कारंठ तालाब है।pc:Joe Mabel
अनेगुड्डे
अनेगुड्डे का मतलब होता है एलीफैंट पहाड़ी। उड़पुी से 30 किमी दूर इस जगह को कुंबाशी भी कहते हैं। इस पहाड़ी की चोटि पर एक गणेश मंदिर भी स्थापित है। माना जाता है कि परशुराम द्वारा बनाए गए कुछ धार्मिक स्थलों में ये पहाड़ी भी शामिल है।
Pc: Raghavendra Nayak Muddur
सोमेश्वर वन्यजीव अभ्यारण्य
इस अभ्यारण्य में सदाबहार वन हैं। इसे कुद्रेमुख नेशनल पार्क के समीप है। यहां पर आप बाघ, संबर, गौर, लंगूर, किंग कोबरा, पायथन, मालाबार ट्रोगोन देख सकते हैं।PC: Dinesh Valke
कुडलू तीर्थ झरना
उड़ुपी से 40 किमी दूर स्थित है कुडलू तीर्थ झरना जोकि सीता नदी का पहला झरना है। इस झरने का पानी 126 फीट की ऊंचाई से आकर तालाब में गिरता है। ये तालाब काफी पवित्र माना जाता है और इसके पानी में औषधीय गुण भी पाए जाते हैं।pc:Roland mendonca
कॉयन म्यूजियम कॉर्प बैंक
कॉर्पोरेशन बैंक द्वारा स्थापित इस संग्रहालय में दुर्लभ सिक्कों को रखा गया है। 3500 साल पुराने सिक्कों और मुद्रा को यहां रखा गया है। ये संग्रहालय भारत का पहला कॉर्पोरेशन बैंक है। यहां पर आप प्राचीन काल के बार्टर की वस्तुओं को भी देख सकते हैं।Pc: Arivumathi