चेन्नई जिसे पहले मद्रास के नाम से जाना जाता था भारत के सुदूर दक्षिण में स्थित राज्य तामिलनाडू की राजधानी है। कोरोमंडल तट पर बसा यह शहर एक प्रमुख मेट्रोपॉलिटन और कास्मोपॉलिटन सिटी है। व्यापार, संस्कृति, शिक्षा और अर्थव्यवस्था के नजरिए से यह दक्षिण भारत के साथ-साथ देश का एक महत्वपूर्ण शहर है। ज्ञात हो कि वर्तमान में चेन्नई को दक्षिण भारत की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर जाना जाता है।
आज अपने इस लेख में हम आपको अवगत कराने जा रहे हैं चेन्नई के उन खूबसूरत मंदिर से जो जहां एक तरफ इस शहर को आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बना रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ अपने वास्तु कौशल से हर साल देश दुनिया के लाखों पर्यटकों का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कला, शिल्प, संगीत, नृत्य और तमाम तरह के मनोरंजन चेन्नई में काफी समय पहले से ही फूले फले हैं। साथ ही लंबे समय से यह शहर कई तरह के कलाओं के संरक्षण का काम कर रहा है और इन कलाओं के संरक्षण के लिए शहर में मौजूद अलग अलग मंदिर भी अपना अपना योगदान दे रहे हैं।
तो आइये इस लेख के जरिये जरा गहराई से जानें चेन्नई में स्थित इन खूबसूरत मंदिरों के बारे में।
पार्थसारथी मंदिर
चेन्नई के त्रिपलीकेन में बना पार्थसारथी मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को 8वीं शताब्दी में बनवाया गया था। आपको बता दें कि पार्थसारथी एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है अर्जुन का सारथी। महाभारत की लड़ाई में भगवान कृष्ण भी अर्जुन की सारथी का हिस्सा थे। त्रिपलीकेन स्थित भगवान कृष्ण का मंदिर राजा नरसिम्हावर्मण प्रथम द्वारा मान्यता प्राप्त था। मंदिर के अंदर भगवान विष्णु, कृष्णा, नरसिम्हा, राम और वराह के विभिन्न अवतारों को रखा गया है। चेन्नई का सबसे पुराना निर्माण होने के कारण भी इस मंदिर की प्रसिद्धी है। इसी कारण से यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इसके अलावा मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी भी करी गई है।
कपालीश्वर मंदिर
कपालीश्वर मंदिर चेन्नई के उपनगर मलयापुर में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है। यहां पार्वती की पूजा करपागंबल के रूप में किया जाता है। आपको बता दें कि इस मंदिर का नाम कपलम और ईश्वर पर पड़ा है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी के आसपास पल्लव राजाओं ने किया था। इस मंदिर की वास्तुशिल्पय बनावट द्रविड शैली से काफी मिलती जुलती है। कहा तो यह भी जाता है कि मूल मंदिर उस स्थान पर बना था जहां आज सैंथोम चर्च बना हुआ है। वर्तमान समय के मंदिर को विजयनगर के राजाओं ने 16वीं शताब्दी में बनवाया था।
नवाग्रह मंदिर
चेन्नई के बाहरी इलाके में स्थित नवाग्रह मंदिर दरअसल 9 मंदिरों का समूह है। ये 9 मंदिर नौ ग्रहों को समर्पित है। प्रचीन समय में इन मंदिरों के रास्ते काफी दुर्गम थे और सफर काफी मुश्किलों भरा होता था। ऐसा माना जाता था कि मंदिर में प्रार्थना करने से व्यक्ति हर तरह की मुसिबत से दूर रहता है। सभी 9 मंदिरों को चोला काल के दौरान बनवाया गया था और इसकी वास्तशिल्पीय बनावट बेहद अद्भुत है। वैसे तो सभी मंदिरों का अपना विशेष महत्व है। आपको बता दें कि यहां सभी 9 मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव है। हालांकि अलग-अलग मंदिरों में उनके अलग-अलग रूपों की पूजा होती है।
अष्टलक्ष्मी मंदिर
चेन्नई का अष्टलक्ष्मी मंदिर आठ हिंदू देवी को समर्पित है। इन सभी के बारे में माना जाता है कि यह धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की रूप है। देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी थी। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी हमारे जीवन में धन के विभिन्न रूपों, स्वास्थ्य, ज्ञान, संतान, शक्ति और शौर्य का ध्यान रखती है। अष्टलक्ष्मी देवी की पूजा हमेशा एक साथ करना चाहिए। यह मंदिर बसंत नगर समुद्र तट पर स्थित है और इसमें चार तल हैं। मंदिर में आठ देवी की प्रतिमा अलग-अलग तल पर रखी गई है। देवी की पूजा की शुरुआत दूसरे तल से होती है, जहां देवी महालक्ष्मी और महाविष्णु की प्रतिमा रखी गई है। तीसरे तल पर शांता लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और गजालक्ष्मी का तीर्थस्थल है। वहीं चौथे तल पर सिर्फ धनलक्ष्मी की प्रतिमा है। इसके अलावा पहले तल पर आदिलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी और ध्यान लक्ष्मी का तीर्थस्थल है।
कालीकंबल मंदिर
चेन्नई कालीकंबल मंदिर जॉर्ज टाउन में थंबू छेट्टी स्ट्रीट में स्थित है। शहर का एक प्रमुख आर्थिक केन्द्र होने के कारण यह एक चर्चित स्थान है। यह मंदिर हिंदू देवी कालीकंबल को समर्पित है, जिसे भारत के कई हिस्सों में देवी कमाक्षी के रूप में भी पूजा जाता है। वर्तमान के कालीकंबल मंदिर को 1640 में उस समय बनवाया गया था जब मूल मंदिर नष्ट हो गया था। पुराना मंदिर समुद्र तट के किनारे था और ऐसा माना जाता है कि पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने मंदिर को नष्ट किया था। स्थानीय पौराणिक कथा के अनुसार कभी इस मंदिर में देवी कमाक्षी की एक उग्र रूप की पूजा की जाती थी।देवी के इस रूप को काफी आक्रमक और शक्तिशाली माना जाता था। बाद में देवी के उग्र रूप के स्थान पर कम आक्रमक और ज्यादा शांत देवी कालीकंबल को स्थापित किया गया। देवी कमाक्षी के इस अवतार को शांता स्वरूप माना जाता है।