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अगर रोमांच देखना है..मुंबई में जरुर देखे दही हांडी उत्सव

अगर इस बार छुट्टियों में कुछ नया देखने की इच्छा है तो निकल पड़िए मुंबई और देखिये रोमांच से भरा दही हांडी उत्सव

By Goldi

अगर आप मुंबई में हैं या फिर मुंबई घूमने का प्लान बना रहे हैं, जन्माष्टमी के दौरान मुंबई की सैर करने का प्लान बनाइए..माना की मथुरा की जन्माष्टमी सबसे अच्छी होती है, लेकिन महाराष्ट्र जैसी दही हांडी आपको कहीं देखने को नहीं मिलेगी...जी हां, अगर आप इसको देखना चाहते हैं..तो बस जन्माष्टमी के दूसरे दिन ही निकल पड़िए मुंबई की गलियों में कहीं ना कहीं किसी ना किसी नुक्कड़ पर आपको दही हांडी प्रतियोगिता होते हुए नजर आ जाएगी।

जब एक भक्त के लिए गवाही देने चले आये थे बांके बिहारीजब एक भक्त के लिए गवाही देने चले आये थे बांके बिहारी

दही हांडी महाराष्ट्र के प्रसिद्द त्योहारों में से एक है..जिसे पूरे महाराष्ट्र में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।इस त्यौहार सिर्फ आमजन ही नहीं बल्कि बॉलीवुड हस्तियां भी खूब जोर शोर से मनाती है।यह पर्व जन्माष्टमी के दूसरे दिन मनाया जाता है...इस दिन एक ऊँचे से तार पर एक हांडी मक्खन से भरकर एक ऊंचाई पर बाँध दी जाती है।जिसके बाद लड़को की टोली एक पिलर बनाकर इस हांडी को तोड़ने का प्रयास करते हैं।हांडी तोड़ने वालो का उत्साह बढ़ाने के लिए आसपास के लोग गोविन्दा आला रे गाते हैं...और हांडी तोड़ने वालो उत्साह बढ़ाते हैं।

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स पर्व का जोश पूरे महाराष्ट्र में देखा जा सकता है..खासकर की मुंबई में..मुंबई में इस त्यौहार आम इन्सान से लेकर बॉलीवुड जगह की हस्तियां भी बनाते हैं..और हांडी फोड़ते हैं। इस दौरान कई दुर्घटनाएं भी हुई है..जिसके चलते हाईकोर्ट ने 14 वर्ष की उम्र के कम आयु के युवायों की भागदारी पर रोक लगा दी है। इस बार दही हांडी का पर्व पन्द्रह अगस्त को मनाया जायेगा...

क्या है दही हांडी?

क्या है दही हांडी?

जन्माष्टमी के अवसर पर जन्माष्टी से अगले दिन युवाओं की टोलियां काफी ऊंचाई पर बंधी दही की हांडी (एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन) को तोड़ती हैं। इसके लिये मानवीय पिरामिड का निर्माण करते हैं और एक प्रतिभागिता इस पिरामिड के ऊपर चढ़कर मटकी को तोड़ता है। महाराष्ट्र और गोआ के विभिन्न क्षेत्रों में दही-हांडी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। जो टोली दही हांडी को फोड़ती है उसे विजेता घोषित किया जाता है। प्रतियोगिता को मुश्किल बनाने के लिये प्रतिभागियों पर पानी की बौछार भी की जाती है। इन तमाम बाधाओं को पार कर जो मटकी फोड़ता है वही विजेता होता है। इस उतस्व की खास बात यह भी है कि जो भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है उस हर युवक-युवती को गोविंदा कहा जाता है।PC: wikimedia.org

क्यों मनाई जाती है दही हांडी?

क्यों मनाई जाती है दही हांडी?

जैसा की सभी जानते हैं कि,कृष्ण बचपन में काफी शैतान थे और मक्खन उन्हें काफी प्रिय था..अक्सर उनकी माता यशोदा उनसे मक्खन बचाने के लिए ऊपर रख देती थी...लेकिन कृष्ण यानी नन्हे बाल गोपाल को मक्खन खाना होता था..तो वह घर में लटकी हुए दही हांडी को तोड़ते थे..और बड़े चाव से खुद भी खाते थे और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे। इस त्यौहार को भगवान कृष्ण दुआरा की गई शरारत और मज़ाक को पुनः जीने का एक तरीका है।PC:Madhav Pai

आसान नहीं होता दही हांडी फोड़ना

आसान नहीं होता दही हांडी फोड़ना

दही-हांडी प्रतियोगिता में हांडी को फोड़ना इतना आसान नहीं होता। हांडी को फोड़ने के लिए ऊँचा पिरामिड बनाना बहुत मुश्किल काम होता है। इस काम में महेनत और हिमत दोनों लगती है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की "अगर आपका लक्ष्य निश्चित हो और आप मेहनत व हिम्मत दिखाएं तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।"PC: Madhav Pai

कैसे तोड़ी जाती है मटकी?

कैसे तोड़ी जाती है मटकी?

दही और पैसे के साथ बंधी इस मटकी को लटका दिया जाता है। मटकी तक पहुंचने के लिए लड़के एक पिरामिड बनाते हैं और मटकी को तोड़ देते हैं। इस उतस्व की खास बात यह भी है कि जो भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है उस हर युवक-युवती को गोविंदा कहा जाता है।

PC: Sandeshmahadik8

दही हांडी प्रतियोगिता के नये नियम

दही हांडी प्रतियोगिता के नये नियम

एक और जहां इस उत्सव में सभी गोविंदा उल्लास से भरे होते हैं तो वहीं कुछ टोलियां संतुलन खोकर दुर्घटना का शिकार भी होती हैं। कई बार तो किसी प्रतिभागी की मृत्यु भी हो जाती है तो कुछ को इतनी गंभीर चोट आती हैं कि इन सबको देखते हुए 2014 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने दही हांडी को लटकाने की उच्चत्तम सीमा 20 फीट के साथ 14 वर्ष के उम्र के बच्चो की उम्र पर रोक लगा दी है ।

दही हांडी में छुपा हुआ है श्री कृष्ण का संदेश

दही हांडी में छुपा हुआ है श्री कृष्ण का संदेश

इस प्रतियोगिता से सीख भी मिलती है कि लक्ष्य भले ही कितना भी कठिन हो लेकिन मिलकर एकजुटता के साथ प्रयत्न करने पर उसमें कामयाबी जरुर मिलती है। यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिये भी देते हैं।

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