हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत गांव-कसोल
कुछ लोग भरमौर के हरे-भरे पर्वत वाले क्षेत्र को भगवान शिव की भूमि भी कहते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। भरमौर को पहले ब्रह्मपुरा के नाम से जाना जाता था। यहां के कई प्राचीन मंदिर पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं, जिनमें से कुछ लगभग 10वी शताब्दी में स्थापित किये गये थे।
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भरमौर में हरे-भरे रोलिंग घास वाले मैदान भी हैं, जिन्हें चरवाहों के द्वारा चारगाह की भूमि के रूप में उपयोग किया जाता है। यह रवि और चिनाब की प्रसिद्ध घाटियों के बीच स्थित है। भरमौर के लोगों का स्वभाव गर्मजोशी से भरा और दोस्ताना है।चौरसी मंदिर परिसर भरमौर के स्थापत्य और सांस्कृतिक भव्यता को दर्शाता है।
चौरासी मंदिर भवन
चौरासी का शाब्दिक रूप से हिंदी में नम्बर 84 अनुवाद है. एक लोकप्रिय कथा के अनुसार कई हजार साल पहले इस मार्ग पर 84 सिध्दी भगवान शिव का ध्यान करते थे।इन चौरासी सिध्दियों में मुख्य देवी-देवता देवी लक्ष्मणा, भगवान गणेश और भगवान मनिमहेश हैं।
भगवान गणेश को समर्पित ये मंदिर 7वीं सदी में वर्मन साम्राज्य के मेरू वर्मन द्वारा बनवाया गया था। मंदिर में बनी भगवान गणेश की कांस्य छवि पूरी तरह से लकड़ी की बनी हुए है. इस मंदिर में वर्मन साम्राज्य की वास्तुकला देखने को मिलती है। यहां आने वाले श्रद्धालु लक्षणा देवी मंदिर के दर्शन जरुर करें।
मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है. मंदिर के बाहरी दरवाजे पर लकड़ी की उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। मां महिशासुरमर्दनी के ही एक स्वरूप की तरह लक्षणा देवी की मूर्ति की चार भुजाएं हैं।
भर्मानी माता मंदिर
भरमौर शहर से 4 किमी दूर स्थित है भर्मानी देवी का मंदिर. माना जाता है कि भरमौर शहर, भर्मानी देवी के बाद ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। यह एक ऊंची चोटी पर स्थित है और पूरी तरह से देवदार और चीढ के पेड़ों से घिरा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की ओर जाने से पहले मनिमाहेश झील में एक डुबकी लगाना मंगलमय होता है।
मनिमहेश
मनिमाहेश ऊंचाई वाली एक पवित्र झील है। आमतौर पर मनिमाहेश मंदिर की ओर जाने से पहले भक्त इस झील में एक डुबकी लगाया करते हैं।यह 4080 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और हिमालय में पीर पंजाल पर्वत श्रेणी के मनिमाहेश कैलाश पर्वत के करीब है। माना जाता है कि इस झील का धार्मिक महत्व झील मानसरोवर के बाद आता है।
अन्य मंदिर और तीर्थ स्थान
जैसा कि आपको पहले भी बताया गया है कि भरमौर कई प्राचीन मंदिरों का निवास स्थल है. कार्तिकेय मंदिर, शिवशक्ति देवी मंदिर, बन्नी माता मंदिर और भगवान नरसिन्ह मंदिर के साथ ही यहां और भी कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं. भरमौर आए पर्यटक और श्रद्धालु इन मंदिरों की यात्रा किए बिना वापिस नहीं लौटते हैं।
भरमौर के झरने
ये शहर न केवल मंदिरों से घिरा है, बल्कि यहां चारों ओर लुभावने झरने भी मौजूद हैं।थला, घोडेड, हडसार, कक्सेन-भागसेन और सथली जैसे झरने शहर से 20 किमी की दूरी पर स्थित हैं।थाला जैसे झरने को केवल मॉनसून के समय में ही देखा जा सकता है, क्योंकि इसके पानी की मात्रा काफी कम है। इन झरनों तक पहुंचने के लिए आपको न्यूनतम 200 मीटर की चढ़ाई करनी पड़ेगी। चढ़ाई के बाद ऊपर जाकर आपको ऐसा सुंदर नज़ारा दिखेगा कि आपकी चढ़ाई की सारी थकान ही दूर हो जाएगी।
कब करें भरमौर की यात्रा
पूरे साल यहां का मौसम ठंडा रहता है लेकिन हिमाचल प्रदेश के अन्य स्थानों की तरह यहां पर भी यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तक होता है।साल के अन्य महीनों की तरह इस समय यहां ज्यादा ठंड नहीं पड़ती है।
लेकिन अगर आप हिमपात यानी बर्फबारी देखना चाहते हैं, तो दिसम्बर से फरवरी के दौरान यहां की यात्रा कर सकते हैं. इस समय यहां का तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
कैसे जायें?
वायु मार्ग
धर्मशाला का कांगडा हवाई अड्डा भरमौर शहर के सबसे करीब है। यह लगभग 180 किमी की दूरी पर है। इस हवाई अड्डे पर दिल्ली, ग्वालियर, इंदौर और वारणसी जैसे शहरों से उड़ाने भरी जाती हैं।
रेल मार्ग
पठानकोट रेलवे स्टेशन और चक्की बैंक रेलवे स्टेशन भरमौर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन हैं।इनकी दूरी करीबन 180 किमी है।इस स्टेशन पर बड़े-बड़े शहरों जैसे जम्मू, धौलाधर, भटिंडा, दिल्ली आदि से ट्रेने आती हैं।
सड़क मार्ग
भरमौर, हिमाचल प्रदेश के अन्य शहरों जैसे चम्बा, डलहौज़ी, कांगडा आदि से सड़क र्मा द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।भरमौर जाने के लिए टैक्सी और अंतर्राज्यीय बसें नियमित रूप से उपलब्ध हैं।