भारत के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश वो राज्य है जो अपनी , प्रकृति ,शांत वातावरण और खूबसूरती के कारण हर साल देश दुनिया के लाखों पर्यटकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। आपको बताते चलें कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या के चलते वर्तमान में यहाँ पर्यटन तेजी से बढ़ रहे उद्योगों में से एक है और यही कारण है की प्रतिवर्ष राज्य की आय में भी भारी इजाफा देखने को मिल रहा है।
Read in English: Travel to the 5 Mystical Temples of Himachal Pradesh
आज राज्य में कई ऐसे खूबसूरत जिले मौजूद हैं जहां हर रोज़ हज़ारों पर्यटक घूमने आते हैं। हिमाचल में मौजूद इन सभी जिलों कि ख़ास बात है कि यहां सभी के लिए कुछ न कुछ मौजूद है।यहां चाहे आप धर्म की दृष्टि से आएं हों या फिर एडवेंचर के शौक़ीन हों, आप हिमाचल में सकते हैं जिसकी कल्पना आपने अक्सर ही की होगी।
गौरतलब है कि हिमाचल में जहां एक तरफ आप वा ट्रैकिंग, पैरासेलिंग, पैरा ग्लाइडिंग, पर्वतारोहण, स्कीइंग और आइस स्केटिंग जैसी एक्टिविटी को अंजाम दे सकते हैं तो वहीँ दूसरी तरफ ये राज्य उनके लिए भी है जिन्हें धर्म में दिलचस्पी है। तो इसी क्रम में हम आज अपने इस लेख के जरिये आपको अवगत कराने जा रहे हैं हिमाचल प्रदेश में मौजूद टॉप 4 बेपनाह खूबसूरत और धर्म की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मंदिरों से। अब देर किस बात की आइये जानें इन खूबसूरत टॉप 4 मंदिरों के बारे में।
बैजनाथ मंदिर
1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों अहुका और मन्युका द्वारा स्थापित बैजनाथ मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। हिंदू देवता शिव को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है। मंदिर के बरामदे पर शिलालेख द्वारा मंदिर के निर्माण से पहले हिंदू देवता शिव के अस्तित्व का संकेत मिलता है। मंदिर की वर्तमान वास्तुकला नगर शैली का अच्छा उदाहरण है है जो मध्ययुगीन उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला के रूप में लोकप्रिय है। इस मंदिर के पवित्र स्थान में शिवलिंग का स्वयंभू रूप है जिसके ऊपर एक ऊंचा शिखर है। प्रवेश करने वाला हॉल एक चौकोर मंडप की ओर जाता है जिसमे दो बड़ी बालकनी हैं । इस मंदिर की बाहरी दीवारें और बाहरी द्वार पर धार्मिक शिलालेखों के अलावा कई देवी देवताओं के चित्र भी बने हुए हैं। मंडप के सामने चार छोटे स्तंभों पर बरामदे में नंदी की मूर्ति देखी जा सकती है। नंदी एक बैल है जो भगवान शिव का वाहन है।
Photo Courtesy: Rakeshkdogra
ज्वालामुखी मंदिर
ज्वालामुखी मंदिरको ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है, जो कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है। ये मंदिर हिन्दू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। जिनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस जगह का एक अन्य आकर्षण ताम्बे का पाइप भी है जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अलग अग्नि की अलग अलग 6 लपटें हैं जो अलग अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली उनपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्य बासनी , महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी . पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये मंदिर सती के कारण बना था बताया जाता है की देवी सती की जीभ यहाँ गिरी थी। हिन्दू धर्म में देवी सती का एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस मंदिर में अग्नि की लपटें एक पर्वत से निकलती हैं।
चिंतपूर्णी मंदिर
चिंतपूर्णी मंदिर, ऊना में समुद्र स्तर से ऊपर 940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक महत्वपूर्ण और पवित्र शक्तिपीठ है जो हिंदू धर्म की देवी को समर्पित है। मंदिर से हिल स्टेशन भारवेन की दूरी मात्र 3 किमी. है। इस मंदिर को सारस्वत पंडित माई दास द्वारा स्थापित किया गया था। मंदिर का मुख्य आकर्षण एक गर्भ ग्रह और गर्भग्रह अंतरतम है जहां देवी की प्रतिमा स्थापित है। इस पत्थर के मंदिर में उत्तर दिशा में कई प्रवेश द्वार है। यहां आकर श्रद्धालु कई देवी- देवताओं की प्रतिमा के दर्शन कर सकते हैं। यहां स्थित देवी की मूर्ति को पिंडी के नाम से जाना जाता है जो सफेद संगमरमर की बनी हुई है। मंदिर के पश्चिमी भाग में हनुमान जी का मंदिर है। मंदिर परिसर में एक बरगद का वृक्ष है जहां बच्चों का मुंड़न संस्कार किया जाता है। हर साल यहां तीन बार चिंतपूर्णी मेला लगता है जिन्हे हिंदू महीने के अनुसार, चैत्र, सावन और अषाढ़ में लगाया जाता है। नवरात्र के दौरान यहां के माहौल में हलचल रहती है और नौ दिन तक श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
Photo Courtesy: Gopal Aggarwal
हडिम्बा मंदिर
यह मंदिर मनाली में सबसे फेमस जगह है। यह मंदिर एक गुफा में बना हुआ है जो देवी हिडम्बा को समर्पित है। देवी हिडम्बा, हिडम्ब की बहन थी। यह मंदिर हिमालय की तलहटी पर स्थित है जिसके आसपास हरियाली है औरसिडार के जंगल हैं। इस मंदिर का निर्माण 1553 ई. में एक पत्थर में किया गया था। पत्थर को इस प्रकार काटा गया कि उसका आकर गुफानुमा हो गया। इस पत्थर के अंदर जाकर श्रद्धालु दर्शन कर सकते है और विशेष पूजा का आयोजन कर सकते हैं। कहा जाता है कि राजा ने इस मंदिर को बनवाने के बाद मंदिर बनाने वाले कारीगरों के सीधे हाथों को काट दिया ताकि वह कहीं और ऐसा मंदिर न बना सकें। यहां पर होने वाली विशेष पूजा को घोर पूजा के नाम से जाना जाता है। यह पूजा मंदिर में ही आयोजित की जाती है। हर साल 14 मई को मंदिर में देवी जी का जन्मदिन मनाया जाता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और दर्शन करते हैं।
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