हम वाराणसी को बस एक ही नज़रिये से देखने के आदि हो चुके हैं, उसे धार्मिक पहलु से देखने के लिए। वाराणसी को हम धार्मिक स्थल से देखने के लिए ऐसे बंध चुके हैं कि हमने कभी मुश्किल से ही उसके ऐतिहासिक और वास्तुकला के चमत्कारों को सराहने की कोशिश की होगी। यहाँ कुछ ऐसे स्मारक हैं, जो काशी के राज्य के युग से संबंध रखती हैं, जिन्होंने बनारस की रियासत पर राज किया।
[वाराणसी से जुड़ी दिलचस्प बातें!]
आज हम आपको इस लेख में बनारस के अंदर बाहर ही स्थित ऐसे दो प्रसिद्ध किलों की सैर पर ले जाएंगे जो शाही अतीत के अवशेष के रूप में आज भी शान से खड़े हैं।
रामनगर का किला
Image Courtesy: Cpsinghvns
रामनगर का किला
गंगा नदी के पूर्वी तट पर रामनगर में आप एक राजसी मुग़ल शैली में बने प्राचीन किले की शान को सराह सकते हैं। यह 18 वीं शताब्दी की रचना आज भी शाही परिवार के वंशजों का वास स्थल है। किले के महल का एक भाग संग्रहालय के रूप में परिवर्तित हो गया है, जो लोगों के लिए खुला रहता है। यह सुन्दर बलुआ पत्थर की रचना तुलसी घाट के एकदम विपरीत ही रामनगर में स्थित है।
रामनगर किले का मुख्य प्रवेश द्वार
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रामनगर किले के आकर्षण
रामनगर किले के परिसर में एक आलीशान महल है, जिसके एक हिस्से में शाही परिवार रहता है और एक हिस्सा संग्रहालय में तब्दील हो गया है, जो दरबार हॉल हुआ करता था, वेद व्यास मंदिर और दक्षिणा मुखी(हनुमान) मंदिर है।
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रामनगर किले के संग्रहालय में बनारस के महाराजा से सम्बंधित कलाकृतियों का एक विस्तृत संग्रह है। संग्रहालय में सोने चाँदी से जड़े असामान्य पालकी के अवशेष, दुर्लभ खगोलीय घड़ी, अफ्रीका से लाए गए पुराने बन्दुक, राजा की तस्वीरें, अमेरिका की पुरानी कारें, शाही वस्त्र(किंक्वा सिल्क), तलवारें आदि देखने को मिलेंगे।
रामनगर का किला
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पहले किले का परिसर किसी भी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने का स्थान हुआ करता था। अभी हाल ही में किले के पास दशहरे के मौके पर रामलीला का आयोजन किया गया था। आज भी काशी नरेश इस क्षेत्र के प्रसिद्ध हस्ती हैं। हालाँकि आज के समय में उतने कार्यक्रमों का आयोजन अब यहाँ नहीं होता है पर कुछ भक्तगण आज भी जनवरी और फ़रवरी में त्यौहार के समय, परिसर में स्थित वेद व्यास मंदिर के दर्शन को आते हैं। राज मंगल, परिसर के अंदर आयोजित होने वाले सबसे प्राचीन त्यौहारों में से एक है।
वर्तमान समय में रामनगर का किला पसंदीदा शूटिंग स्थान भी बन चुका है।
चुनार किला
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चुनार किला
चुनार फोर्ट एक प्राचीन किला है जो हमें सीधे 56 ईसा पूर्व के समय में ले जाता है। कई कथाएं आज भी चुनार नगर और चुनार के किले से सम्बंधित हैं। इसे कई सालों तक एक अखंडनीय किला कहा जाता था। चुनार का किला उत्तरप्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में आता है।
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चुनार की कथा
एक कथा राजा बाली और बावन भगवान से सम्बंधित है। कथा इस प्रकार है कि, भगवान बावन एक ब्राह्मण के रूप में राजा बाली के पास गए और 3 फ़ीट ज़मीन की मांग की। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बावन ने अपना एक कदम इस क्षेत्र में रखा जिसके बाद यह चरणाद्रि कहलाने लगा।
चुनार के किले का मुख्य प्रवेशद्वार
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चुनार के किले में आकर्षण
आज के समय में चुनार के किले का कुछ ही अवशेष बचा हुआ है, जबकि यह मुगल वंश के शासन के दौरान विकास के चरम पर था। एक गढ़, अंग्रेजों के समय में बने घर और बावड़ी इस किले के परिसर में स्थापित हैं। किले का विशाल परकोटा और प्रवेश द्वार यहाँ दिखता है।
चुनार का किला गंगा नदी के तट पर एक चट्टानी पट्ट के ऊपर बना हुआ है। यह ऐतिहासिक समय के दौरान एक प्रमुख रणनीतिक स्थान के रूप में स्थापित था। वाराणसी से यह लगभग 44 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
चुनार किले के परिसर में स्थित सोनवा मंडप
Image Courtesy: Joy1963
तो अब आप जब भी वाराणसी की तीर्थयात्रा पर जाएँ, आसपास में ही बसे इतिहास के इन अवशेषों से ज़रूर रूबरू होंए जो आपको वाराणसी को एक अलग नज़रिये से पेश करेंगे।
अपने महत्पूर्ण सुझाव व अनुभव नीचे व्यक्त करें।
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