मध्यप्रदेश का उज्जैन शहर मंदिरों से भरा हुआ है। कुछ प्रमुख हिन्दू मंदिर जो यहाँ स्थित हैं उनकी वजह से यह हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। और इन सारे प्रमुख मंदिरों में स्थापित है एक अद्वितीय मंदिर जहाँ अनुष्ठान का एक अनूठा ही रिवाज़ है या आप कह लो अपरंपरागत रिवाज़। जी हाँ, हम यहाँ बात कर रहे हैं उज्जैन के काल भैरव मंदिर की, जो अपनी पूजा अर्चना की अजीब अनुष्ठान और रिवाज़ के लिए भक्तों और पर्यटकों दोनों के बीच प्रसिद्द है।
उज्जैन के इस अनूठे मंदिर की महिमा को मानने वाले भी भक्तों की संख्या बहुत लंबी है। हर साल यहाँ हज़ारों की संख्या में भक्तगण अपने देवता की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद पाने आते हैं। आपको तो पता ही होगा कि हमारे भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो गहरे राज़ों की वजह से प्रचलित हैं। ऐसे ही कुछ अचंभित करने वाले राज़ को अपने में समेटे हुए है, उज्जैन का यह प्राचीन मंदिर।
यूँ तो देश के अन्य कई भैरव बाबा के मंदिर में मदिरा पान कराने की परंपरा है ही, पर यहाँ कुछ अजीब ही चमत्कार होता है जिसकी वजह से भक्तों का इस मंदिर और इसके देवता पर अटूट विश्वास है।
[महल की छत पर बना उस समय का स्विमिंग पुल!]
चलिए आज हम आपको लिए चलते हैं इन्हीं भैरव बाबा के दर्शन कराने और उनके कुछ अजीब से रहस्य का पता लगाने।
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भैरव बाबा मंदिर
उज्जैन का काल भैरव मंदिर एक बहुत ही महत्वपूर्ण मंदिर है जहाँ हर रोज़ भक्तों का ताँता लगा होता है। काल भैरव देवता को समर्पित, जिन्हें शहर का संरक्षक देवता कहते हैं, यह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। यह उज्जैन के सबसे भरे-पूरे और जीवन्त मंदिरों में से एक है।
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भैरव बाबा मंदिर की रचना
कहा जाता है कि मंदिर की मूल रचना का निर्माण अप्रसिद्ध राजा भद्रसेन द्वारा करवाया गया था। ऐसा अवंति खंड और स्कन्द पुराण में उल्लेखित है। आज वर्तमान काल में मंदिर का निर्माण मंदिर की पुरानी रचना पर ही किया गया है और इस मंदिर में मराठा वास्तुकला की झलक दिखाई देती है।
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भैरव बाबा मंदिर की रचना
यहाँ के कुछ निशान इस बात के साक्षी हैं कि मंदिर की दीवारों को मालवा चित्रों से सजाया गया था। परमार काल के (9वीं-13वीं सदी)भगवान शिव जी, पार्वती जी, विष्णु जी और गणेश जी से सम्बंधित कई तस्वीरों को यहाँ बरामद किया गया है।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
काल भैरव मंदिर की सबसे दिलचस्प बात है यहाँ का चढ़ावा। यहाँ के चढ़ावे में प्रसाद के रूप में देवता को शराब(मदिरा) चढ़ाई जाती है।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
देवता को मदिरा पान कराना तांत्रिक अनुष्ठान के 5 चढ़ावों में से एक है जिन्हें पंचमकार कहते हैं; मद्य(शराब), मांस,मीन या मत्स्य(मछली) और मुद्रा और मैथुन(संभोग)।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
पुराने ज़माने में, देवता को इन पांचों अनुष्ठानों का चढ़ावा चढ़ता था पर अब इनमें से सिर्फ मदिरा का चढ़ावा चढ़ता है, अन्य चार अब सिर्फ प्रसाद प्रतीकात्मक अनुष्ठान के रूप में रह गए हैं।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
मंदिर के बाहर ही सरकारी और गैर-सरकारी विक्रेता शराबों की दुकान लगाकर बैठे हैं जहाँ देशी और विदेशी दोनों तरह की शराब उपलब्ध हैं।मंदिर का पंडित शराब को एक बर्तन में डाल देवता के मुख के सामने, जहाँ एक संकरी दरार है, चढ़ावे के रूप में रख देता है।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
जैसे-जैसे पंडित बर्तन को उनके मुख में डालने के लिए टेढ़ा करता जाता है, शराब भी धीरे-धीरे गायब होने लगती है, यानि कि बर्तन में से ख़त्म होने लगती है। उस शराब की बोतल का एक तिहाई हिस्सा भक्त को ही दोबारा प्रसाद के रूप में लौट दिया जाता है।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
मंदिर के पुजारी और साथ ही साथ वहां आने वाले भक्तों का कहना है कि देवता की मूर्ति के मुँह में जो संकरी दरार है उसमें किसी भी तरह का गुहा या छेद नहीं है, भैरव देवता खुद ही चमत्कारिक ढंग से मदिरा का प्रसाद के रूप में पान करते हैं।
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कुश विशेष प्रसाद का चढ़ावा
तो अब आप जब भी कभी मध्यप्रदेश की इस धार्मिक स्थली पर जाएँ इस अद्वितीय मंदिर के दर्शन कर यहाँ की दिलचस्प प्रथा को देखना मत भूलियेगा। इस मंदिर की ही एक प्रतिकृति गुजरात के भुज-मुंद्रा मार्ग पर स्थापित है।
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