उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ का शुमार भारत के उन डेस्टिनेशनों में हैं जो जहां एक तरफ अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है तो वहीं दूसरी तरफ ये स्थान अपनी खूबसूरती से हर साल देश के अलावा विदेश से आने वाले लाखों पर्यटकों को भी अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। यह स्थान समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर है और उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन में स्थित है।
यहां मौजूद केदारनाथ मन्दिर को हिन्दुओं के पवित्रतम गंतव्यों (चार धामों) में से एक माना जाता है और बारहों ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ऊँचा यहीं पर स्थित है। मन्दिर के पास से ही शानदार मन्दाकिनी नदी बहती है। यदि बात पर्यटन की हो तो यहाँ ऐसा बहुत कुछ है जो पर्यटकों को इस खूबसूरत स्थान से जोड़ता है।
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केदारनाथ आने वाले यात्री आदि गुरू शंकराचार्य की समाधि पर अवश्य जाएं इसके अलावा चौखम्भा चोटी, वासुकी ताल, केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, गुप्तकाशी, भैरवनाथ मन्दिर और गौरीकुण्ड की भी यात्रा उन्हें अवश्य करनी चाहिए। आइये इस लेख के जरिये गहराई से जाना जाये कि ऐसा क्या है जो आपको केदारनाथ जाकर अवश्य करना चाहिए।
कैसे जाएं केदारनाथ
केदारनाथ के लिये निकटतम हवाईअड्डा 239 किमी की दूरी पर देहरादून का जॉली ग्रान्ट हवाईअड्डा है। जो यात्री रेल द्वारा आना चाहें वे अपना टिकट 227 किमी की दूरी पर स्थित ऋषिकेश रेलवे स्टेशन के लिये बुक कर सकते हैं। इसके अलावा ये शहर एक अच्छे रोड नेटवर्क के जरिये देश के सभी प्रमुख शहरों से भी जुड़ा है।
फोटो कर्टसी - ASIM CHAUDHURI
केदारनाथ मन्दिर
केदारनाथ पर्वतश्रृंखलाओं में स्थित केदारनाथ मन्दिर एक प्रमुख तीर्थस्थल है जहाँ पर हिन्दू भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित है। केदारनाथ का ज्योतिर्लिंग 3584 मी की ऊँचाई पर स्थित है और बारहों ज्योतिर्लिंगों में सबसे महत्वपूर्ण है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस 8वीं शताब्दी के मन्दिर के पास से ही मंदाकिनी नदी बहती है। यह मन्दिर एक पुराने मन्दिर के बगल में स्थित है जिसे पाँण्डवों ने बनाया था। प्रार्थना हॉल की आन्तरिक दीवारों पर विभिन्न हिन्दू देवी देवताओं के चित्र देखे जा सकते हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की सवारी नन्दी बैल की प्रतिमा मन्दिर के बाहर एक रक्षक के रूप में स्थित है। मन्दिर के अन्दर गर्भगृह है जहाँ भगवान की पूजा की जाती है। मन्दिर परिसर के अन्दर ही एक मम्डप स्थित है जहाँ पर विभिन्न धार्मिक समारोहों का आयोजन होता है।
फोटो कर्टसी - Shaq774
अगस्त्यमुनि
अगस्त्यमुनि 1000 मी की ऊँचाई पर मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। यह स्थान प्रसिद्ध हिन्दू मुनि अगस्त्य ऋषि का घर माना जाता है जिन्होंने ने यहाँ वर्षों तक तपस्या की। स्थानीय लोग इस मन्दिर को अगस्तेश्वर महादेव मन्दिर भी कहते हैं। मन्दिर के पत्थर की दीवारों पर आगन्तुक प्रख्यात हिन्दू देवी-देवताओं के तराशे गये चित्र देख सकते हैं। मन्दिर में आयोजित होने वाले विभिन्न प्रकार के मेलों में शामिल होने को लिये भारी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। बैसाखी का त्योहार यहाँ हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और इस दौरान मन्दिर में भक्तों की भीड़ दूर दराज के क्षेत्रों से आती है।
फोटो कर्टसी - Kumar Chitrang
भैरवनाथ मन्दिर
भैरवनाथ मन्दिर केदारनाथ मन्दिर से आधा किमी की दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर विनाश के हिन्दू देवता शिव के एक गण भगवान भैरव के समर्पित है। 3001 ईसा पूर्व पहले रावल या राजपूत श्री भिकुण्ड ने मन्दिर में इष्टदेव की स्थापना की थी। मन्दिर के इष्टदेव को क्षेत्रपाल या क्षेत्र का संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार जब सर्दियों में केदारनाथ मन्दिर बन्द कर दिया जाता है तब भैरवनाथ मन्दिर परिसर की रखवाली करते हैं।
फोटो कर्टसी - Kumar Chitrang
चोराबाड़ी ताल
चोराबाड़ी ताल समुद्रतल से 3900 मी की ऊँचाई पर चोराबाड़ी बमक हिमनदी के मुहाने पर स्थित है। केदारनाथ और कीर्ति स्तम्भ चोटियों की तलहटी में स्थित यह स्थान हिमालय की चोटियों का शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। इस ताल में महात्मा गाँधी की अस्थियों को विसर्जित किया गया था इसलिये इसे गाँधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार यह वही झील है जहाँ से पाँण्डवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने स्वर्ग के लिये प्रस्थान किया था। इस स्थान तक 3 किमी की पैदल यात्रा द्वारा पहुँचा जा सकता है।
फोटो कर्टसी - Kumar Chitrang
गौरीकुण्ड
गौरीकुण्ड एक छोटा सा गाँव है जो केदारनाथ के लिये ट्रेकिंग आधार का कार्य करता है। 1982 मी की ऊँचाई पर स्थित इस स्थान पर हिन्दू देवी पार्वती को समर्पित एक बहुत ही पुराना मन्दिर है। ऐसा माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ देवी पार्वती ने भगवान शिव का हृदय जीतने के लिये तपस्या की थी। क्षेत्र में गैरीकुण्ड नाम का एक गर्म पानी का सोता है जिसके पानी के न सिर्फ औषधीय गुण हैं बल्कि इससे श्रृद्धालुओं को अपने पापों से भी मुक्ति मिलती है।
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गुप्तकाशी
गुप्तकाशी अपने प्रसिद्ध पुराने विश्वनाथ मन्दिर, मणिकर्णिक कुण्ड और अर्द्धनारीश्वर मन्दिर के कारण लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। अर्द्धनारीश्वर मन्दिर में भगवान शिव की मूर्ति आधे पुरूष और आधे स्त्री के रूप में स्थापित है। विश्वनाथ मन्दिर को हिन्दू भगवान शिव के कई अवतरों में से एक माना जाता है। लोककथाओं के अनुसार यह वही स्थान है जहाँ कुछ समय के लिये हिन्दू भगवान शिव छिपे थे। भगवान शिव केदारनाथ में भी बैल के रूप में छिपे थे। ये सभी स्थान बाद में तीर्थस्थान बन गये। पास ही पाये जाने वाले आकर्षणों में 2 किमी की दूरी पर गाँधी सरोवर और केदारनाथ से 8 किमी की दूरी पर वासुकी ताल प्रमुख हैं।
फोटो कर्टसी - Kumar Chitrang
केदारनाथ पर्वत
केदारनाथ पर्वत पश्चिमी गढ़वाल के हिमालय में स्थित है। इसमें केदारनाथ और केदारनाथ गुम्बद नाम के दो पहाड़ हैं जिसमें कि केदारनाथ गुम्बद मुख्य चोटी के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2 किमी की दूरी पर स्थित एक छोटी पहाड़ी है। इन दो पहाड़ियों को गंगोत्री के दक्षिणी भाग की तीन सबसे ऊँची चोटियों में गिना जाता है। इसके साथ ही केदारनाथ गुम्बद के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्कीइंग के लिये ढलाने हैं जो साहसिक गतिविधि में रूचि रखने वाले लोगों के बीच लोकप्रिय हैं।
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मन्दाकिनी नदी
अलकनन्दा की सहायक नदी मन्दाकिनी नदी चाराबाड़ी हिमनदी से निकलती है। यह नदी सोनप्रयाग में वासुकीगंगा द्वारा पोषित होकर रूद्रप्रयाग में अलकनन्दा नदी से मिलती है और अन्त में देवप्रयाग में भागीरथी से मिलकर पवित्र गंगा नदी को जन्म देती है। मन्दाकिनी नदी में तीसरी श्रेणी की कई और चौथी तथा पाँचवी श्रेणी की कुछ ढालें हैं जिससे यह कयाकिंग और राफ्टिंग के लिये आदर्श है। इसके अलावा केदारनाथ मन्दिर के पीछे एक छोटा सा पुल है जिसे इस नदी को पार करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
फोटो कर्टसी - Kumar Chitrang
शंकराचार्य समाधि
आदिगुरू शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है। श्री शंकराचार्य एक प्रसिद्ध हिन्दू सन्त थे जिन्होंने अद्वैत वेदान्त के ज्ञान के प्रसार के लिये दूर-दूर तक यात्राये कीं। ऐसा विश्वास है कि इन्होंने ही केदारनाथ मन्दिर को 8वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया और चारों मठों की स्थापना की। लोककथाओं के अनुसार उन्होंने अपने यात्रा की शुरूआत बद्रीनाथ के ज्योतिर्मठ आश्रम से की थी और फिर केदारनाथ के पहाड़ो पर आकर अपना अन्तिम पड़ाव डाला। लोककथाओं के अनुसार शंकराचार्य ने हिन्दुओं के तीर्थस्थानों अर्थात चारधाम की खोज के उपरान्त 32 वर्ष की अल्पायु में ही समाधि ले ली थी।
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वासुकी ताल
वासुकी ताल केदारनाथ से 8 किमी की दूरी पर और समुद्रतल से 4135 मी की ऊँचाई पर स्थित है। यह झील शानदार हिमालय पर्वतश्रृंखलाओं के बीच स्थित है और उत्तराखण्ड का महत्वपूर्ण पर्यटक गंतव्य है। यहाँ आने वाले यात्री झील के पास में स्थित चौखम्भा चोटी के सुन्दरता का आनन्द ले सकते हैं। यात्रियों को इस स्थान तक पहुँचने के लिये चतुरंगी और वासुकी हिमनदियों को पार करना पड़ता है।
फोटो कर्टसी - Kumar Chitrang
उखीमठ
उखीमठ, रुद्रप्रयाग जिले की एक पवित्र जगह है, माना जाता है कि इस जगह का यह नाम ‘बाणासुर' की बेटी ‘ऊषा' से उत्त्पन्न हुआ है। यह जगह कई हिंदू देवी देवताओं के लिए समर्पित विभिन्न मंदिरों जैसे ऊषा, शिव, अनिरुद्ध, पार्वती और मंधाता मंदिर की यात्रा का अवसर प्रदान करता है। पास ही में एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर भी है जिसे सर्दियों के मौसम के दौरान भगवान केदारनाथ के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है।
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