आज पूरे देश में हर्षौल्लास के साथ शिव रात्री का पर्व मनाया जा रहा है। इसीलिए आज हम आपको भारत के एक धार्मिक स्थल के बताने जा रहें है, जिसके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं,जो अपने आप में ख़ास है और इससे जुडी गाथा बेहद दिलचस्प है अपनी इस महाशिवरात्रि स्पेशल सीरीज में आज हम आपको बताएंगे तुंगनाथ के मंदिर बारे में...
हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना तुंगनाथ का मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मुख्य रूप से चारधाम की यात्रा के लिए आने वाले यात्रियों के लिए यह मन्दिर बहुत महत्त्वपूर्ण है।
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कहां है तुंगनाथ मंदिर
मंदिर तुंगनाथ माउंटेन रेंज में समुद्र स्तर से 3680 मीटर की ऊंचाई पर चोपता उत्तराखंड में स्थित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण अर्जुन ने किया था जो कि पांडवों में से एक थे और जिनका विवरण हिंदू महाकाव्य महाभारत में है ।इस मन्दिर को 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है। यहाँ भगवान शिव के 'पंचकेदार' रूप में से एक की पूजा की जाती है। ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित इस भव्य मन्दिर को देखने के लिए प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में हज़ारों तीर्थयात्री और पर्यटक यहाँ आते हैं।
भगवान राम से भी है तुंगनाथ
पुराणों में कहा गया है कि रामचंद्र शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे। कहते हैं कि लंकापति रावण का वध करने के बाद रामचंद्र ने तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था। रामचंद्र ने यहां कुछ वक्त बिताया था। चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चंद्रशिला पहुंचकर आप विराट हिमालय की सुदंर छटा का आनंद ले सकते हैं।
चोपता से कैसे पहुंचे तुंगनाथ मंदिर
चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। यहां पर प्राचीन शिव मंदिर है। इस प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन करने के बाद यदि आप हिम्मत जुटा सके तो मात्र डेढ़ किमी. की ऊंचाई चढ़ने के बाद चौदह हजार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है.. जहां ठीक सामने छू लेने लायक हिमालय का विराट रूप किसी को भी हतप्रभ कर सकता है।चारों ओर पसरे सन्नाटे में ऐसा लगता है मानो आप और प्रकृति दोनों यहां आकर एकाकार हो उठे हों।
तुंगनाथ से नीचे जंगल की खूबसूरत रेंज और घाटी का जो नजारा उभरता है, वो बहुत ही अनूठा है। चोपता से करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवहरयिा ताल पहुँचा जा सकता है जो कि तुंगनाथ मंदिर के दक्षिण दिशा में है। इस ताल की कुछ ऐसी विशेषता है जो इसे और सरोवरों से विशिष्टता प्रदान करती है। इस पारदर्शी सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिंब स्पष्ट नजर आने लगते हैं। इस सरोवर का कुल व्यास पांच सौ मीटर है। इसके चारों ओर बांस व बुरांश के सघन वन हैं तो दूसरी तरफ एक खुला सा मैदान है।
कैसे पहुंचे
यहां आने के लिए पहले ऋषिकेश आएं। ऋषिकेश के लिए नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है। देहरादून के लिए सभी बड़ी सिटीज से फ्लाइट्स मिलती हैं। यहां से चोपटा टैक्सी या बस से जा सकते हैं।
चोपटा से नजदीकी स्टेशन ऋषिकेश (209 किमी) है। यहां लगभग सभी सिटीज से ट्रेन्स आती हैं। दिल्ली, देहरादून, कोलकाता, मुंबई, जयपुर, पटना, अहमदाबाद, गया, वाराणसी, पुरी, कोची और भुवनेश्वर से डायरेक्ट ट्रेन चलती हैं। यहां से ऊखीमठ और चोपटा के लिए टैक्सी, बस मिलती हैं।
दिल्ली, हरियाणा, यूपी, पंजाब और उत्तराखंड से ऋषिकेश के लिए बसेस चलती हैं। यहां से NH58 पर रूद्रप्रयाग वाली रोड पर जाने से ऊखीमठ पड़ेगा। ऊखीमठ से चोपटा 40 किमी है। बस या टैक्सी लें।
दिल्ली से तुंगनाथ जाने का रूट
दिल्ली-हरिद्वार-ऋषिकेश-देव प्रयाग-श्रीनगर-रूद्र प्रयाग-अगस्तमुनी-स्याल सौर-उखीमठ-दुगालबिट्टा-बनिया कुंड-चोपता-तुंगनाथ मंदिर
कब जाएँ
मई से नवंबर तक यहां कि यात्रा की जा सकती है। हालांकि यात्रा बाकी समय में भी की जा सकती है लेकिन बर्फ गिरी होने की वजह से मोटर का सफर कम और ट्रैक ज्यादा होता है। जाने वाले लोग जनवरी व फरवरी के महीने में भी यहां की बर्फ की मजा लेने जाते हैं।यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है।