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मणिपुर का मशहूर महिला बाजार ईमा कैथेल...एक बार घूमे जरुर

भारत के पूर्वोत्तर राज्य में स्थित इमा केथेल बाजार महिलायों द्वारा संचालित है..इस बाजार को 3500 महिलाएं मिलाकर चलाती है..अगर मणिपुर घूमने जा रहे हैं..तो मार्केट में शॉपिंग जरुर करें

By Goldi

अगर आपको नई नई जगहें देखने का शौक है तो आपको जीवन में एकबार मणिपुर की सैर जरुर करनी चाहिए। भारत के इस पूर्वोत्‍तर राज्‍य मणिपुर में सिरउई लिली, संगाई हिरण, लोकतक झील में तैरते द्वीप, दूर - दूर तक फैली हरियाली, उदारवादी जलवायु और परंपरा का सुंदर मिश्रण देखने का मिलता है।

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मणिपुर की राजधानी इम्‍फाल, जो प्राकृतिक सुंदरता और वन्‍यजीवन से घिरी हुई है। इम्‍फाल में द्वितीय विश्‍व युद्ध के इम्‍फाल के युद्ध और कोहिमा के युद्ध का उल्लेख मिलता है। यह स्‍थल यहां आने वाले पर्यटकों को मणिपुर के साथ जोड़ता है। कई लोग इस बात को सुनकर आश्‍चर्यचकित हो जाते हैं कि पोलो खेल की उत्‍पत्ति इम्‍फाल में हुई थी। इस जगह कई प्राचीन अवशेष, मंदिर और स्‍मारक हैं। श्री गोविंद जी मंदिर, कांगला पैलेस, युद्ध स्‍मारक, महिलाओं के द्वारा चलाया जाने वाले बाजार - इमा केथेल, इम्‍फाल घाटी और दो बगीचे इस जगह को पूरी तरह से पर्यटन के लायक बनाते हैं।

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इसी क्रम में आज हम आपको बताने जा रहें है इम्फाल के इमा केथेल मार्केट के बारे में.. मणिपुर की राजधानी इम्फाल के बीचोंबीच स्थित इमा कैथेल राज्य की आंतरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। मणिपुरी भाषा में इमा का मतलब होता है माँ और कैथेल का मतलब होता है बाजार।

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मणिपुर की आंतरिक अर्थव्यवस्था में महिलाओं का बड़ा योगदान है। जिसके कारण मणिपुर की महिलाएं अन्य भारत की महिलाओं के मुकाबले ज्यादा आत्मनिर्भर और सशक्त हैं। मणिपुर की महिलाओं की आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण का ही प्रतीक है इमा कैथेल या नुपी कैथेल।

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पूरी तरह से महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले इमा किथेल में आप हर चीज और सब कुछ पा सकते हैं। यदि एक कोने में, एक औरत एक किलो मछली तौलने में व्यस्त है, तो दूसरे कोने में कोलाहल के बीच एक औरत बुनाई करती हुई और ग्राहकों को खुश करने के लिए तुरंत के बने हुए ऊनी कपड़ों को बेचती हुई पाई जा सकती है।

कब बना बाजार?

कब बना बाजार?

16 वीं सदी में बना मणिपुर का इमा बाजार देश ही नहीं संभवत: दुनिया का इकलौता ऐसा बाजार है... इमा बाजार यानी मदर्स मार्केट वर्ष 1533 में बना था। इस बाजार के बसने के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, तब पुरुषों को चावल के खेतों में काम करने भेज दिया जाता था। तब घरों में अकेली औरतें बचती थीं। धीरे-धीरे इन्हीं औरतों ने यह बाज़ार बसा दिया। पुराने मार्केट के पास ही यहां 2010 में सरकार ने नया मार्केट भी शुरू किया है।

दुनिया का इकलौता मार्केट

दुनिया का इकलौता मार्केट

महिलाओं के द्वारा संचालित यह बाजार अपनी एक अलग पहचान रखता है। दुनिया का शायद यह इकलौता बाजार होगा जहां सिर्फ और सिर्फ महिला दुकानदार ही हैं। यह पूरे तरीके से महिलाओं की मार्केट है। क्या नहीं मिलता है यहां पूर्वोत्तर के खान-पान से लेकर परंपरागत और आधुनिक सामान तक।

ख्वाईरंबन्द में है स्थित

ख्वाईरंबन्द में है स्थित

इम्फाल शहर के ख्वाईरंबन्द नामक इलाके में स्थित यह बाजार तीन भागों में पुराना बाजार, लक्ष्मी बाजार और नया बाजार के नाम से बड़े-बड़े कॉम्प्लेक्स में विभाजित है।

सब कुछ मिलेगा इस मार्केट में

सब कुछ मिलेगा इस मार्केट में

इन तीनों में अलग-अलग वस्तुएँ मिलती हैं। जैसे नया बाजार में सब्जी, मछली और फल मिलते हैं तो वहीं लक्ष्मी बाजार में परंपरागत कपड़े और अन्य घरेलू सामान। इन तीनों कॉम्प्लेक्स को मिलाकर बनता है इमा कैथेल। जिसके अंदर छोटी-छोटी पंक्ति में 15-16 दुकानें (दुकानें कोई ईंट सीमेंट या टीन से बनी हुई नहीं, बल्कि जैसे सब्जी मंडी में होती हैं एक निश्चित स्थान कुछ-कुछ वैसा ही) हैं।

3500 महिलाएं चलाती है दुकान

3500 महिलाएं चलाती है दुकान

इस मार्केट में करीबन 3500 महिलाएं अपनी दुकानें चलाती हैं।

कोई कम्पटीशन नहीं

कोई कम्पटीशन नहीं

सबसे दिलचस्प यह है कि यहां बाकी बाज़ारों की तरह प्रतिस्पर्धा नहीं की जाती। अगर कोई सामान आपको किसी दुकान पर नहीं मिलता, या पसंद नहीं आता, तो वह स्थानीय दुकानदार आपको दूसरी महिला दुकानदार तक भेज देती है।

कायदे-कानून

कायदे-कानून

इस बाजार के कुछ अलिखित नियम हैं जो इसकी खूबसूरती भी है। यहां यदि कोई कपड़ा बेच रहा है तो वह कपड़ा ही बेचेगा सब्जी या कुछ और नहीं बेच सकता। यह कोई लिखित कानून नहीं है पर इस बात का सब लोग ध्यान रखते हैं। इससे कहीं न कहीं समानता का भाव तो बनता है।

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