भारत एक अद्भुत देश है जो किसी ज़माने में अंग्रेज़ों का उपनिवेश था। कहा जाता था कि ब्रिटिश राज्य का सूरज कभी ढलता नहीं था। 1615 में जब मुग़लों को पराजित कर अंग्रेज़ों ने भारत में प्रवेश किया तो उस समय वो हमारे मेहमान नहीं रह गए थे। व्यापार के उद्देश्य से आने वाले अंग्रेज भारत में एक मिशन के चलते आये थे, उन्होंने यहां की व्यवस्था को बदला और भारत पर कोई 300 सालों तक शासन किया।
भारतीय जीवन को कैसे बदला जाये ? शायद इस प्रश्न का जवाब ये हो कि आप इनके दैनिक जीवन में प्रवेश करिये और परिवर्तन की शुरुआत वहां से कीजिये। इस बात को यूं भी समझा जा सकता है कि आप भारतियों के मन में बसी सौंदर्य की भावना को थोडा बदलें और उस भावना में कोई चीज अपनी जोड़ दें जैसा कि अंग्रेजों ने किया था । आज अंग्रेज भारत छोड़ के जा चुके हैं मगर आज भी उनके द्वारा बनवाई गयी इमारतें और सड़कें वास्तुकला के प्रति उनके लगाव को दर्शाती हैं।
गौरतलब है कि मद्रास, कोलकाता, दिल्ली और बॉम्बे उस समय भारत के प्रमुख ब्रिटिश उपनिवेश थे। जब आप इन स्थानों की यात्रा पर जाएंगे तो आपको मिलेगा कि जिस खूबसूरती ने अंग्रेजों ने वास्तुकला के प्रति अपने रुझान को दर्शाया है उसकी प्रशंसा शब्दों के माध्यम से नहीं की जा सकती। आइये आज जाने उन इमारतों के बारे में जो अंग्रेजों ने भारत में रहते हुए अपने शासनकाल में बनवाई थी।
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गेटवे ऑफ इंडिया
मुंबई के कोलाबा में स्थित गेटवे ऑफ इंडिया वास्तुशिल्प का चमत्कार है और इसकी ऊँचाई लगभग आठ मंजिल के बराबर है। वास्तुकला के हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रकारों को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण सन 1911 में राजा की यात्रा के स्मरण निमित्त किया गया। पृष्ठभूमि में गेटवे ऑफ इंडिया के साथ आपकी एक फोटो खिंचवाएँ बिना मुंबई की यात्रा अधूरी है। गेटवे ऑफ इंडिया खरीददारों के स्वर्ग कॉज़वे और दक्षिण मुंबई के कुछ प्रसिद्द रेस्टारेंट जैसे बड़े मियाँ, कैफ़े मोंदेगर और प्रसिद्द कैफ़े लियोपोल्ड के निकट है।
इंडिया गेट
दिल्ली के सभी मुख्य आकर्षणों में से पर्यटक, इंडिया गेट जाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। दिल्ली के ह्रदय में स्थापित यह भारत के एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में शान से खड़ा है। 42 मी. ऊंचे इस स्मारक का निर्माण पेरिस के आर्क-डी-ट्राईओम्फे की तरह किया गया है। इस स्मारक का मूल नाम अखिल भारतीय युद्ध स्मारक था जिसे लगभग 70000 सैनिकों की याद में बनवाया गया था। ये वे सैनिक थे जिन्होंने अंग्रेजी सेना की तरफ से विश्व युद्ध प्रथम एवं 1919 में तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में अपने जीवन का बलिदान दिया था। हालाँकि इस इमारत की नींव महामहिम ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने 1921 में रखी थी, परन्तु इस स्मारक को 1931 में उस समय के वाइसरॉय लार्ड इरविन ने पूर्ण करवाया।
राष्ट्रपति भवन
राष्ट्रपति भवन भारत में मौजूद सबसे प्रतिष्ठित इमारतों के अलावा अपनी प्रभावशाली वास्तुकला के और भारत के राष्ट्रपति के सरकारी निवास स्थान के रूप में जाना जाता है।
ये इमारत तब अस्तित्व में आयी जब देश की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करा गया। इस संरचना का निर्माण ब्रिटिश वाइसराय को समायोजित करने के लिए किया गया था और इस प्रकार यह इमारत शाही मुगल वास्तुकला और सुरुचिपूर्ण के रूप में अच्छी तरह से यूरोपीय वास्तुकला का एक शास्त्रीय मिश्रण दर्शाती है।
विक्टोरिया मैमोरियल
विक्टोरिया मैमोरियल भारत में अंग्रेजी राज को दी गई एक श्रद्धांजलि है, इसे पुनः निर्मित किया गया था और यह ताजमहल पर आधारित था। इसे आम जनता के लिए 1921 में खोला गया था, इसमें शाही परिवार की कुछ तस्वीरें भी हैं। इन बेशकीमती प्रदर्शन के अलावा पर्यटक विक्टोरिया मेमोरियल की ख़ूबसूरत संरचना को देखने यहाँ आते हैं। यह कोलकाता के सबसे मशहूर दर्शनीय स्थलों में से एक है।
विक्टोरिया टर्मिनस
वी. टी. स्टेशन जिसे छत्रपति शिवाजी स्टेशन भी कहा जाता है, कई वर्षों से मुंबई का प्रमुख व्यापारिक केंद्र है। यहाँ शहरी युवाओं की भीड़ रहती है और इस क्षेत्र के फुटपाथ और सबवे में कई आवश्यक वस्तुएँ जैसे इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, कंप्यूटर बाज़ार और कपड़े की दुकाने हैं। वे पर्यटक जो दक्षिण मुंबई में ठहरें हैं उन्हें होटल के नीचे ही अनेक विकल्प उपलब्ध हैं जहाँ वे 17 वीं शताब्दी की पुस्तकों, स्टैम्प और सिक्के बेचने वाली दुकानों में सौदेबाज़ी कर सकते हैं।
सेल्यूलर जेल
यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पडता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी। अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं।