हम अक्सर गूगल पर दक्षिण भारत के शहरों को सर्च करते हैं और उनकी प्रकृतिक खूबसूरती को देख एकदम चकित रह जाते हैं।फिर सोचते हैं कि, जब भी मौका मिलेगा एक बार साउथ इंडिया घूमेंगे जरुर। यह लालसा मेरी ही नहीं बल्कि हर उस घुम्मकड़ की है,जो प्रकृति से प्यार करता है। हो भी क्यों ना आखिर दक्षिण भारत है ही इतना खूबसूरत।
दक्षिण भारत को घूमने की लालसा बचपन से तो नहीं लेकिन जब साउथ के बारे में पढ़ा समझा तो लगा एक बार तो जरुर साउथ घुमोगी। फिर एक दिन अचानक मुझे अपने ऑफिस के सिलसिले में बैंगलोर एक कांफ्रेंस अटेंड करने का इनविटेशन मिला। जैसे ही इनविटेशन मेरे हाथ में आया, ऐसा लगा मानो भगवान ने मेरी साउथ घूमने की इच्छा पूरी का दी हो।मैंने बिना देरी किये दिल्ली से बैंगलोर का फ्लाइट टिकट बुक करा लिया। मैं पहली बार दक्षिण भारत जा रही थी, मन काफी उत्साहित था। जाने से एकदिन पहले मैंने पूरी शॉपिंग की साथ ही अपने साथ एक कैमरा भी लिया। यूं तो कैमरा फोन में भी है , लेकिन मुझे फोटोग्राफी करने का बेहद शौक है, इसलिए मैंने अपने साथ एक बड़ा कैमरा भी ले लिया। मैंने घर में ही निश्चय कर लिया था, कि कैसे क्या क्या घूमना है।
मैंने अपनी यात्रा को कुछ इस तरह प्लान किया था- नयी दिल्ली-बैंगलोर-हम्पी-गोकर्णा-बैंगलोर-कोडाईकनाल-वाटकनाल-मुन्नार-चिन्नार-तेक्केडी-अलेप्पी-वर्कला- त्रिवेंद्रपुरम-कोच्ची-नयी दिल्ली
दक्षिण भारत घूमने के उतावलेपन में मुझे नींद नहीं आयी, खैर दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ गयी और नाश्ता करके घर से एयरपोर्ट के लिए निकल गयी। दिल्ली से मेरी बैंगलोर की फ्लाइट करीबन 7 बजे की थी, और मै बैंगलोर 9 बजे पहुंच चुकी थी। एयरपोर्ट से निकलते निकलते मुझे 10 बज गया था।
बैंगलोर आते ही दिमाग में ख्याल आया, कि आख़िरकार आज मै सपने को जीने जा रही हूं, जिसे कबसे मैंने अपनी आँखों में सजो कर रखा था।मैंने दिन में बैंगलोर थोड़ा बहुत घूमा उसके बाद मैंने शाम को होसपेट की बस पकड़ ली...होसपेट से हम्पी की दूरी महज 12 किमी है। मै रात मै करीबन 12 बजे होसपेट पहुंच गयी, उसके बाद मैंने वहां एक सस्ता सा होटल देखा और सोने चली गयी।
हम्पी
सुबह हम्पी घूमने के उतावलेपन में मै जल्दी उठ गयी और बिना नाश्ता किये निकल पड़ी हम्पी। चिंता मत करो-हम्पी रहो--मैंने यह उद्धारण हम्पी में आये लोगो की टी-शर्ट पर देखा। मैंने यूं तो कई मंदिरों को देखा है लेकिन हम्पी जैसे सुंदर वास्तुकला के मंदिर पहली बार ही देखे थे,मैंने बिना देरी किये सभी मन्दिरों को खूब तस्वीरें निकाली। हालांकि घूमते घूमते मुझे वाकई मै अब भूख लग चुकी थी, इसलिए मैंने मैंगो ट्री रेस्तरां में एक अच्छा सा लंच किया। उसके बाद मैंने हम्पी में एक साईकिल किराए पर ली, और जमकर हम्पी दर्शन किया। मैंने, यहां मतंग हिल, गणेश जी का मंदिर, लोटस टेम्पल आदि देखा। हम्पी देखने के बाद मैं रात की बस पकड़ निकल पड़ी अपनी अगली डेस्टिनेशन गोकर्णा बीच।
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गोकर्णा
मै हम्पी से गोकर्णा सुबह पहुंच चुकी थी। जिसके बाद मैंने वहां एक अच्छा और सस्ता होटल ढूंढा। होटल में थोड़ी देरी आराम करने के बाद मै बीच देखने निकल पड़ी। बता दूं, यह पहली बार था, जब मै किसी बीच पर घूमने जा रही थी। मैंने पूरा दिन बीच पर ही गुजारा। इतना ही नहीं, इस बीच पर आपको खाने पीने का सामना भी काफी वाजिब दामों पर मिल जायेगा। गोकर्णा बीच घूमने के बाद बारी थी बैंगलोर जाने की, क्योंकि मुझे वहां ऑफिस की और से आयोजित कांफ्रेंस में हिस्सा लेना था। PC: wikicommons
बैंगलोर
बैंगलोर में मैंने ओयो रूम्स की मदद से 800 रुपये मै एक अच्छा सा कमरा बुक किया। यहां की कांफ्रेंस खत्म करने के बाद बारी थी अब अगले डेस्टिनेशन की...मेरा अगला पड़ाव था कोडाईकनाल। बैंगलोर से कोडाईकनाल की दूरी कुछ साढ़े चार सौ किमी है, मै बैंगलोर से शाम को ही कोडाईकनाल के लिए रवाना हो गयी। कोडाईकनाल तमिल नाडू में स्थित है जोकि बैंगलोर से साढ़े 450 किमी की दूरी पर स्थित है। PC: wikicommons
कोडाईकनाल
कोडाईकनाल में मेरी यात्रा का अनुभव काफी अच्छा रहा इसलिए मैं दो दिन की बजाए तीन दिन रुकी। मैंने पहले दिन साइकलिंग कर कोडाईकनाल झील को घूमा और आसपास की प्रकृतिक सुन्दरता को देख मन कर रहा था, बस यहीं ठहर जाऊं अब। कोडाईकनाल में मैंने कोडाईकनाल के साथ उसके नजदीकी शहर घुमा..जोकि कोडाइ से भी ज्यादा खूबसूरत था। यहां गहरी खाइयां मन को थोड़ा विचलित जरुर करती थी, लेकिन यहां अदम्य खूबसूरती मन को बार बार मोह ले रही थी। यकिन मानिए यहां से मेरा जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था, लेकिन कहते है ना,जब जायेंगे तभी तो वापस आ सकेंगे।
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मुन्नार
कोडाईकनाल घूमने के बाद अब मेरा अगला डेस्टिनेशन था मुन्नार। मुन्नार जोकि केरला में बसा हुआ है। मुन्नार इतना खूबसूरत है कि उसका बखान नहीं किया जा सकता। उंचे उंचे हरे भरे पहाड़ और गहरी खाई साथ ही बड़े बड़े चाय के बागन...जिन्हें देख लगता है कि, अगर स्वर्ग कहीं है तो बस यहीं है। मुन्नार घूमने के बाद अब बारी थी चिन्नार की।
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चिन्नार
चिन्नार अभयारण्य केरल में मुन्नार के पास स्थित है। मरयूर से 20 किमी आगे चिन्नार वन्यजीव अभयारण्य केरल-तमिलनाडु बॉर्डर पर स्थित है। मैंने यहां जमकर घूमा और ढेर सारी फोटोज भी क्लिक किये।दक्षिण भारत की सैर करते समय लग रहा था, कि काश ये पल यहीं ठहर..सब कुछ कितना खूबसूरत है यहां।PC: wikicommons
तेक्केडी
तेक्केडी प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है, यहां मैंने पहली बार मसालों के बगान देखे साथ ही निर्मल झरने का भी मजा लिया।मै तेक्केडी के पेरियार नेशनल पार्क भी गयी, इस पार्क में मैंने हाथी की सवारी करना पसंद की। इतना सब घूमने के बाद बारी थी केरला के सबसे सुंदर जगह अलेप्पी की। अलेप्पी बेहद खूबसूरत है।PC: wikicommons
अलेप्पी
शांति और फुरसत के पल बिताने की जगह के लिए अलेप्पी एकदम बेस्ट जगह है, शायद इसीलिए इसे पूरब का वेनिस कहा जाता है। यहां रात में पहुंचकर मैंने होटल बुक किया..और अलेप्पी घूमने से पहले मैंने एक अच्छी नींद लेने का विचार किया। दूसरे दिन सुबह उठकर मै अलेप्पी घूमने को पूरी तरह से तैयार थी। अलेप्पी में मैंने बोट हाउस का पूरा मजा लिया उसके बाद मैंने यहां केरला की प्रसिद्ध केरला थाली का भी स्वाद चखा।अलेप्पी में पूरा दिन गुजारने के बाद अबबारी थी, अगली जगह की...यानी वर्कला बीच की। हालांकि वर्कला जाने से पहले मैंने अलेप्पी में ही रात गुजारना बेहतर समझा। और सुबह होते ही निकल पड़ी वर्कला...... PC: wikicommons
वर्कला
मैंने अलेप्पी से वर्कला जाने के लिए सुबह ही ट्रेन पकड़ ली थी..जिसके बाद मै दोपहर तक वर्कला पहुंच चुकी थी। वर्कला बीच दक्षिण भारत के बीच तटों में से सबसे अच्छे बीच में गिना जाता है। वर्कला बीच पर मैं खूब धमाचौकड़ी मचाई। वहां घूमने आये बच्चो के साथ मै भी बच्ची बन गयी और मैंने खूब मस्ती की।
वर्कला बीच पर मस्ती काटने के बाद अब बारी थी,त्रिवेंद्रपुरम पहुँचने की। शाम को मैंने वर्कला से त्रिवेंद्रपुरम की ट्रेन पकड़ी..ट्रेन में मुझे कई नये साथी मिले जिनके साथ मस्ती मजाक करते करते कब मै त्रिवेंद्रपुरम पहुंच गयी, मुझे पता ही नहीं चला।
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कोच्ची एयरपोर्ट
हालांकि दक्षिण भारत की सैर मै मुझे शॉपिंग के लिए कहीं भी ज्यादा मौका नहीं मिला इसलिए मैंने त्रिवेंद्रपुरम में शॉपिंग करने का विचार बनाया। त्रिवेंद्रपुरम में ढेर सारी शॉपिंग करने के बाद बारी थी घर जाने की और दक्षिण भारत को अलविदा कहने की, त्रिवेंद्रपुरम से मैंने कोच्ची की बस पकड़ी..क्यों कि कोच्ची से मेरी दिल्ली की फ्लाइट थी। मैंने दक्षिण भारत की अपनी पूरी यात्रा में काफी कुछ नया सीखा, मैंने दुबारा आने की दक्षिण भारत को अलविदा कहा।
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