भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है ईज्हाराप्पाल्लिकल और सेवन एंड हाफ चर्चेज़ जिसे सैंट थॉमस द एपॉसल ने पहली सदी में स्थापित किया था। रिकॉर्ड के अनुसार औश्र भारतीय ईसाई परंपरा के तहत सैंड थॉमस 52 ईस्वी में क्रैंगानोर पोर्ट आए थे और तब उन्होंने गिरजाघरों की स्थापना की थी। अब ये सभी गिरजाघर केरल और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित हैं।
मरने से पहले एकबार केरला जरुर घूमे....
इन गिरजाघरों को केरल की यहूदी बस्तियों के पास बनाया गया है। ये गिरजाघर कोदुनगल्लुर के मलिआंकार, कोल्लम, निरानम, निलाकल, कोक्कामंगलम, कोट्टाकवु, पालायूर और थिरुविथमकोडे में स्थित है। इन गिरजाघरों की खास बात ये है कि ये सभी ईसाई धर्म के अलग-अलग समूह को दर्शाते हैं।
मारथोमा पॉन्टिफिकल मंदिर - कोदुनगल्लुर
52 ईस्वी में कोदुनगल्लुर आने के बाद सैंट थॉमस द्वारा बनाया गया ये पहला गिरजाघर माना जाता है। पेरियार नदी के तट पर बने इस गिरजाघर को मुख्य तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। इय गिरजाार में सैंट थॉमस की इटली से लाई हुई दाएं हाथ की हड्डी रखी हुई है।
3500 वर्ग फुट में फैले इस चर्च को इंडो-पर्शियन वास्तुकला में बनाया गया है। इस चर्च में एपॉस्ल के जीवन के ऊपर 30 मिनट की डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई जाती है।
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सैंट थॉमस सियरो - मालाबार कैथेलिक चर्च पलायूर
इस चर्च को 52 ईस्वी में बनाया गया था। थॉमस जब यूहदी व्यापारियों से मिलने पलायूर आए थे तब उन्होंने इसे बनवाया था। यहां पर ब्राह्मण और यहूदी लोगों की अच्छी पकड़ है। जुदान कुन्नू में एपॉस्ल आए थे और उन्होनें गॉस्पेल का संदेश फैलाया। इतिहास के अनुसार हिंदू मंदिर को वर्तमान गिरजाघर के रूप में बदल दिया गया था।
कोट्टाक्कावु चर्च - दक्षिण परावुर
सैंट थॉमस द्वारा ईरनाकुलम जिले के दक्षिण परावुर में कोट्टाक्कावु चर्च स्थापित किया गया था। माना जाता है कि इस चर्च में रखा फारसी क्रॉस 880 ईस्वी में एक चट्टान को उत्कीर्ण कर बनाया गया था। सैंट थॉमस द्वारा लकड़ी का क्रॉस लगाया था जिसे आखिरी बार 18वीं शताब्दी में देखा गया था। टीपू सुल्तान ने इसे नष्ट कर दिया था।
सैंट थॉमस चर्च - कोक्कामंगलम
अलप्पुजहा जिले के पास चेरथला में स्थित है कोक्कामंगलम चर्च। ऐसा कहा जाता है कि सैंट थॉमस कोक्कामंगलम आए थे और यहां आकर उन्होंने 1600 लोगों का धर्म परिवर्तन करवाकर उन्हें ईसाई बनाया था और धर्म की स्थापना के लिए क्रॉस लगाया था।
आतंकियों ने इस क्रॉस को वेंबनद झील में फेक दिया था जिसके बाद ये पाल्लिपुरम में पाया गया था और अब वहीं इसकी पूजा होती है।
सैंट थॉमस चर्च – निलाक्कल
हिंदू धर्म के प्रसद्धि तीर्थस्थल सबरीमाला के पास स्थित है निलाक्कल जोकि एक वन क्षेत्र है। इस वन क्षेत्र में बने चर्च को 54 ईस्वी में बनाया गया था। इस रास्ते से केरल और तमिलनाडु के बीच व्यापार होता है। सैंट थॉमस ने यहां 1100 लोगों को ईसाई दीक्षा दी थी।
पश्चिमी घाट के घने जंगलों और हरी-भरी घास से घिरा से गिरजाघर 1902 में पहली बार खोजा गया था। कई सालों से सरकार द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसकी वर्तमान इमारत को 1957 में खोजा गया था और तभी से आज तक ये इमारत संरक्षित है।
सैंट मैरी ऑर्थोडॉक्स सिरीयन चर्च
निरानम को निरानम वलिया पल्ली के नाम से भी जाना जाता है। इस गिरजाघर की स्थापला 54 ईस्वी में की गई थी। इसके बनने के बाद इसका कई बार पुर्नरूद्धार कार्य किया जा चुका है। 1259 में यहां पर रत्नों की खुदाई का कार्य किया जाता था।
वर्तमान समय में खड़ी इमारत को 1912 में चौथी बार पुन: बनवाया गया था और सन् 2000 में इसका पुर्ननिर्माण कार्य किया गया था।
कोल्लम चर्च
प्राचीन समय से ही कोल्लम व्यापार का केंद्र बना हुआ है। इसी कारण से सैंट थॉमस ने पोर्ट के समीप गिरजाघर की स्थापना की थी। अरब सागर में अतिक्रमण के दौरान इस गिरजाघर को नष्ट कर दिया गया था। जिसके बाद 1986 में पोप जॉन पॉल लेड को यहां एक पत्थर मिला और उन्होंने यहां पर वर्तमान में स्थित प्यूरिफिकेशन चर्च बनवाया।
सैंट मैरी चर्च - थिरुविथामकोड़
इस गिरजाघर को अरापल्ली के नाम से भी जाना जाता है। इसे 63 ईस्वीं में बनवाया गया था। इसे चेरा के राजा उथियान चेरालथम द्वारा अमाल्गिरी नाम दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि ये दुनिया का सबसे प्राचीन गिरजाघर है जहां आज भी प्रार्थना होती है और इसके निर्माण के बाद से आज तक इसका पुनरुद्धार नहीं किया गया है।